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सोमवार, 14 सितंबर 2009

हिन्दी की वेदना ----"अनुज कौशिक"

पुरस्कृत रचना (सांत्वना पुरस्कार,,हिन्दी साहित्य मंच द्वितीय कविता प्रतियोगिता)

कल रात एक देवी ने

स्वप्न में दर्शन दिये

चेहरे पर उदासी, कपड़ों में बदहवासी

हाथों में तिरंगा पकड़े हुए

पैर बेड़ियों में जकड़े हुए

आँखों में वेदना थी

इसीलिये उनके प्रति-

मेरी संवेदना थी

आखिर मैंने पूछ ही लिया-

हे देवी ! आप कौन हैं ?

जो इस हाल में भी मौन हैं

हाथ में तिरंगा, पैरों में बेड़ियाँ, आँखों में पानी है

लगता है-

भारत माँ की, आज़ादी की, कोई बीती कहानी है

इतना सुनते ही-

उस देवी का मौन टूटा

मन की वेदना का ज्वार फूटा

हे पुत्र ! जिसे तुम भारत माँ कहते हो

मैं उसी भारत माँ के-

मस्तक का श्रृंगार हूँ

लेकिन आजकल लाचार हूँ

मैं भारत माँ के मस्तक की कुमकुम हूँ, बिन्दी हूँ

जिसे तुम मातृभाषा कहते हो, मैं वो ही, हिन्दी हूँ

एक समय था-

जब मैं भी स्वयं पर इठलाती थी

विद्वानों के द्वारा पढ़ी और पढ़ायी जाती थी

मेरा मन तब-तब प्रफुल्लित होता था

जब कोइ साहित्यकार-

मेरे कारण सम्मानित होता था

लेकिन आज मुझे बंधनों में जकड़ दिया है

अंग्रेजी रूपी सौतेली बहन ने मेरा ये हाल किया है

विदेश से आई, आधुनिकता का लिबास पहने-

आप और तुम के अन्तर को खत्म किया है

अखबार से इंटरनेट तक

प्रेम-पत्र से लेकर चैट तक

बस, रेल, हवाई अड्डा या मदिरालय हो

स्कूल, दफ्तर, हस्पताल या न्यायालय हो

चारों ओर अंग्रेजी का ही बोलबाला है

अंग्रेजी के पीछे हर कोई मतवाला है

मैं तो अब केवल हिन्दी कवियों की रचनाओं में

या सरकारी दफ्तर के, हिन्दी विभाग की फाईलॊं में

धूल की चादर ओढ़े, पाई जाती हूँ

या हिन्दी दिवस पर-

हिन्दी कविता के रूप में सुनायी जाती हूँ


मुझे प्रतिक्षा है उस दिन की-

जब कोई मेरा पुजारी, नींद से जागेगा

मुझे मेरे बंधनों से मुक्त करेगा

और भारत में हिन्दी दिवस,

केवल एक दिन ही नहीं-

वर्ष भर मनेगा, वर्ष भर मनेगा, वर्ष भर मनेगा ॥

12 comments:

धीरेन्द्र सिंह ने कहा…

कविता की मूल बावना अच्छी है किन्तु हिंदी दयनीय नहीं है। हिंदी लगातार प्रगति कर रही है, सरकारी कार्यालयों में भी। हिंदी दिवस की शुभकामनाऍ।

निर्मला कपिला ने कहा…

मुझे प्रतिक्षा है उस दिन की-

जब कोई मेरा पुजारी, नींद से जागेगा

मुझे मेरे बंधनों से मुक्त करेगा

और भारत में हिन्दी दिवस,

केवल एक दिन ही नहीं-

वर्ष भर मनेगा, वर्ष भर मनेगा, वर्ष भर मनेगा
बहुत सुन्दर कविता है हिन्दी दिवस पर शुभकामनायें हिन्दी के प्रसार के लिये आपका ये प्रयास प्रशंसनीय है आभार्

Khushdeep Sehgal ने कहा…

हैलो, लेडीज़ एंड जैंटलमैन, टूडे हमको हिंडी डे मनाना मांगटा...

अंग्रेज़ चले गए लेकिन अपनी....छोड़ गए...

Unknown ने कहा…

अनुज जी , जिस मर्म , दर्द और व्यथा को आपने काव्य के माध्यम से उठाया है उसे पढ़कर मन प्रफुल्लित हो गया । आपको हार्दिक बधाई ।

हिन्दी साहित्य मंच ने कहा…

आज की विषयगत स्थिति को उठाते हुए आपने काव्य को जिस मार्मिकता से ढ़ाला है । वह प्रसंशनीय है । काव्य रचना बहुत ही सन्दर है । आपको बहुत बहुत बधाई

Mithilesh dubey ने कहा…

बहुत खुब अनुज जी। हिन्दी की आज के दशा को जिस तरह से आप ने दर्शाया है, वह काबिले तारीफ है। हिन्दी दिवस के अवसर पर इस लाजवाब रचना के लिए बहुत-बहुत बधाई।

विवेक सिंह ने कहा…

अनुज कौशिक जैसा हँसमुख व्यक्ति इतनी गम्भीर कविता लिख बैठेगा, मैंने तो सोचा ही नहीं था.

अब लिख दी तो लिख दी !

रज़िया "राज़" ने कहा…

कविता सुंदर पर करुणभावना!! अभी आस है कि हिन्दी हमारे पास है।

संगीता पुरी ने कहा…

यथार्थ का चित्रण किया है आपने .. सचमुच दयनीय स्थिति है भारत माता के सुहाग की .. ब्‍लाग जगत में आज हिन्‍दी के प्रति सबो की जागरूकता को देखकर अच्‍छा लग रहा है .. हिन्‍दी दिवस की बधाई और शुभकामनाएं !!

Vinashaay sharma ने कहा…

वोह समय कब आयेगा,जब हिन्दी,इन बेड़ीयो से आजाद होगी,इस की आस लगाये वैठे है?

शागिर्द - ए - रेख्ता ने कहा…

बहुत सुंदर रचना, बड़ी ही मार्मिक प्रस्तुति है | शुभकामनाएं एवं हार्दिक बधाई |

sarvo78 ने कहा…

aapko mai naman karta hun ,hindi ke prati aapki shradha mere liye namneeye hai. mai aapko badhai dena chahta hun jo aap ne vartaman parivesh yah shahash dikhaya aur hindi ki vedna ko logo ke samaksha rakhne ka gourvanvit karya kiya.
aapko naman hai