आज शर्म का विषय है कि आज हिन्दी दिवस है।शर्म ही नही राष्ट्रीय शर्म का दिन, जिस दिन स्वयं आज हिन्दी अपने अस्तित्व को खोज रही है। आज लोग हिन्दी को हिन्दी दिवस कम, हिन्दी हास्य दिवस के रूप में ज्यादा मना रहे है। अर्द्ध हिन्दी-अंग्लभाषा का उपयोग कर व्यंग लिखे जा रहे है, हिन्दी और हिन्दी दिवस का उपहास किया जा रहा है। - प्रमेन्द्र प्रताप सिंह
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