डॉ.योगेन्द्र मणि
इस मलाई दार के शोर की गूँज हमारी श्रीमती के कानों में भी पहुंचनी लाजमी थी। तभी तो उन्होंने एक दिन हमसे पूछ ही लिया-ये मलाईदार क्या बला है....?
सोमवार, 31 अगस्त 2009
मलाईदार-मलाई ( व्यंग्य )
जब से मनमोहनी सरकार ने दोबार से होश संभालन शुरु किया, तभी से समाचार पत्रों में मलाईदार विभाग बडी ही चर्चा का विषय रहा है।जनता तो मनमोहन सिंह की मोह-मा्या में फंस गई लेकिन सरकारी बैसाखियां हैं कि मलईदार मंत्रालयों के दरिया में डुबकी लगाने की तैयारी में जुट गई थी।नतीजा सामने है कि मनमोहन की मोहनी सूरत पर मुस्कान आने से पहले ही गायब हो गई और मंत्रियों की घोषणा वे खुले मन से नहीं कर पाऐ।
पिछली बार जब सरकार बनाई थी तो कभी लेफ्ट गुर्राता था तो कभी राइट.....। बडी मुश्किल से संसदीय कुनबे की संभाल पूरे पाँच साल तक की जा सकी...?इसबार जनता ने कूछ दमदारी से उन्हें सरकार की कमान संभलाई तो लगा था कि कमसे कम इस बार तो सिंह साहब अपनी इच्छा से सांस ले सकेगें और लगाम केवल पार्टी सुप्रीमो के पास एक ही हाथ में रहेगी लेकिन इस बार भी बेचारे करुणा और ममता के साथ पंवार की पावर के चक्कर में फंस ही गये। सिंह सहब को एक बार फिर सरकार की इन बैसाखियों की रिपेयरिंग के लिऐ आला कमान की शरण में जाना ही पडा.......। वहाँ से बैसाखियों की रिपेयरिंग करवाकर जनता के सामने नई पुरानी चाशनी से युक्त मलाई -मक्खन वाले विभागों का तलमेल बिठाकर पेश किया गया ।
हमने अपनी कुशाग्र बुद्धी का प्रमाण देते हुऐ तुरन्त जबाब दिया- दूध..... अच्छा बढिया वाला दूध ....मलाईदार होता है...!हमार इतना कहना था कि हमें लगा जैसे बिना गैस का चूल्हा जलाऐ ही दूध में उफान आने वाला है.....? श्रीमती जी तुरन्त बोली-आप क्या मुझे उल्लु समझते हैं.....? सभी मंत्री पद के लिऐ मलाईदार विभाग ढुढ रहे हैं .... मैं पूछती हूँ कि मन्त्रालयों में मलाई भला आई कहाँ से.....? वहाँ क्या पंजाब से भैंस लाकर बांध रखी हैं मनमोहन जी ने.....?
अब भला हम श्रीमती जी को कैसे समझाऐं कि जिस विभाग में दान दक्षिणा और ऊपरी कमाई की जितनी अधिक गुंजाइश होती है वह विभाग सरकरी भाषा में आजकल मलाईदार विभाग कहलाता है ....।अब कहने के लिऐ तो सभी जन सेवक हैं। जनता की सेवा करने के लिऐ ही सभी राजनीति में आऐ हैं।तभी तो पाँच साल में ही बेचारे जनता का दुख-दर्द ढोते- ढोते करोडपति हो जाते हैं......।
अजीब गोरख-धंधा है ऊपर वाले का भी.......! जनता पसीना बहाते- बहाते रोटी के जोड-भाग में हाँफने लगती है लेकिन नेता जी उसी पसीने में इत्र डालकर नहाने से करोडपति हो जाते है.......? तभी तो मन्त्री बनते समय किसी को भी इस बात कोई चिन्ता नहीं होती कि गरीब का उद्धार कैसे होगा सभी की मात्र यही गणित होती है कि जनता का कुछ हो या न हो मेरे परिवार का उद्धार कैसे होगा..........?और वह अपने कुनबे की गरीबी दूर करने में सफल भी हो ही जाता है... बेचारी जनता का क्या है उसे तो वोट देनी है अगले चुनाव आऐगें तो फिर एक बार वोट दे देगी........!!
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3 comments:
योगेन्द्र जी बहुत ही सशक्त व्यंग्य ।
योगेन्द्र जी सच्चाई को उकेरती शानदार व्यंग।
सरकार की यही मजबूरी है । अच्छा लगा ये शानदार व्यंग्य । मलाई तो मलाई ही है सभी को अच्छी लगती है ।
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