जब लहरों से टकराये पत्थर वो पत्थर भी पल में बिखर जाता है रेत बनके वो कण-कण से पत्थर समन्दर में जाके वो मिल जाता है जब लहरों से टकराये पत्थर खेवईयां चलाए बस्तियों को बस्तियों से मिलाए बस्तियों को जब समन्दर की लहरें बदल जाती हैं उजाड़ देती वो कितने बस्तियों को जब लहरों से टकराये पत्थर है कुदरत का सारा करिश्मा लगा है लोगों का मजमा आज लहरों ने ऐसा कहर ढाया है दिया है सबको इसका सदमा जब लहरों से टकराये पत्थर लड़ रहे हैं भाई सब अपने बनाया है सबको जिसे रब ने धमनियों में बहता एक सा है फिर बतलाया भेद हममें किसने जब लेहरों से टकराये पत्थर (नरेन्द्र कुमार)
शनिवार, 29 अगस्त 2009
विनाशकारी लहरें -
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2 comments:
Sundar bhavabhivyakti.
( Treasurer-S. T. )
बहुत सुन्दर कविता । बधाई
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