राजनीतिज्ञो की राजनीति देखी धर्म, सम्प्रदाय में राजनीति दिखी जाति, भाषा से बंटे लोग देखे देखा भाई-भतीजावाद का हर वो चेहरा पर साहित्यकारों में भी राजनीति होगी इसकी कभी परिकल्पना नहीं कि थी मैंने सब दिखा हंस और पाखी के प्रतिवाद में उस ज्ञान पीठ पुस्कार से जिसे समृद्ध ज्ञानत्व वालें लोगो को दिया जाता है आलोचक रचनाकारों के तेवरों ने भी दिखाया राजनीति का चेहरा दिखाया कैसे एक साहित्यकार साहित्य के क्षेत्र में एक छत्र राज करने को लालायित रहता है अपनी ही पत्रिका और लेखनी को सर्वोच्च ठहराने की जुगत करता है इस क्रम में एक-दूसरे पर आक्षेप करने से भी नहीं चूकता आदतें उन तमाम राजनीतिज्ञों की तरह जो अपने ही दल को देश का प्रहरी मानता है और दूसरे को देश का दुश्मन उन धर्मनिर्पेक्ष और साम्प्रदायिक ठेकेदारों की तरह जिन्हें न तो देश से लगाव है न ही देशवासियों से ज्ञान बांटने वाले ये लोग अज्ञानता की राजनीति से गुजरते देखे जायेंगे नवीन कवियों और लेखको के लिए यह बेहद चिंता का विषय है खेमेबाजी की इस दौर में नये उभरते लेखकों को एक खेमा चुनने की विवशता कहीं उनके लेखनी में जड़ता न ला दे जिस समाज को बदलने की आश लिए नए साहित्यकार अपना कलम चलाते हैं कहीं उनके मन में डर न समा जाए कि कौन सा खेमा उनसे ख़ीज खाकर उसके पन्नों पर ही स्याही न छीड़क दे निष्कर्ष सोचकर ही हम जैसे रचनाकारों को डर सा लगने लगा है कही हमारे पल्लवित होते पंख को भी आलोचक राजनीति खेमेबाजी कर कुतर न डालें।
मंगलवार, 25 अगस्त 2009
" राजनीति साहित्य जगत की "- नरेन्द्र कुमार
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3 comments:
Chinta ka vishay hai.
वैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनाएं, राष्ट्र को उन्नति पथ पर ले जाएं।
बात मे सच्चाई है।
बहुत ही सशक्त रचना । बधाई
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