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शनिवार, 22 अगस्त 2009

"बिन पानी इंसान कहा "- नरेन्द्र कुमार

कहीं छांव नहीं सभी धूप लगे


आज पांव में भी गर्मी खूब लगे


कही जलता बदन पसीना बहे


हर डगर पे अब प्यास बढ़े


सतह से वृक्ष वीरान हुये


खेती की जमीं शमशान हुई


पानी की सतह भी द्घटती गई


आबादी जहां की बढ़ती ही गई


गर्मी की तपन जब खूब बढ़ेगी


सूखा सारा हर देश बनेगा


पेड़ सतह से जब मिट जायेगा


इंसान की आबादी खुद--खुद द्घट जायगी


वृक्ष लगा तू धरती बचा


धरती पे है सारा इंसान बसा


जब पेड़ नहीं पानी भी नहीं


बिन पानी फिर इंसान कहां


3 comments:

RAJNISH PARIHAR ने कहा…

पानी बिना सब व्यर्थ है,और अब बहुत बड़ा जल संकट आने वाला है..

Mithilesh dubey ने कहा…

पानी को लेकर अच्छी रचना, । बधाई

Unknown ने कहा…

बहुत खूब समस्या को दर्शाती आपकी रचना अतिसुन्दर लगी ।