कभी खामोश हवा कभी पछियाव कभी पुरवाई अम्मी
कभी हलवे कभी ज़र्दे तो कभी चटनी में समाईं अम्मी
अपने यहाँ के रिश्तों को मैंने कई बार फटते देखा है
जाने कैसे एक ही पल में कर देती हैं सिलाई अम्मी
गिले शिकवों की धूल हटा के प्यार का रंग मिला के
जाने कैसे एक ही पल में कर देती हैं रंगाई अम्मी
और हाँ देखो तो मुझे आसमान छुआने की खातिर
चिमटे, संसी, फुँकनी से बाहर निकल आईं अम्मी
मैंने आंसुओं से एक परदेसी शहर को भिगो डाला
जो मैं उनसे दूर हुआ और जब यादों में हैं आईं अम्मी
संपर्क-
शामिख फ़राज़
कॉस्मिक डिजीटल
कमल्ले चौराहा,
पीलीभीत-२६२००१
उत्तर प्रदेश
भारत
गुरुवार, 30 जुलाई 2009
कविता प्रतियोगिता में तीसरा स्थान प्राप्त कविता - " अम्मी " ( शामिख फ़राज़ )
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2 comments:
आपको बहुत बहुत बधाई इस बेहतरीन रचना के लिए ।
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