हमने फूलों को काँटों के बीच खिलते हुए देखा है.फलक का चाँद, बादलों के बीच निकलते हुए देखा है .कराहने की आवाज़ गुम हो जाती है ,हमने दिलो को पत्थर बनते हुए देखा है . उनके कंधे पे सर रख कर जब रोया था,बूँद को मोती बनते हुए देखा है.सच कहतें है मोहब्बत की जुबान नहीं होती ,लफ्जों को लबो पे रुकते हुए देखा है.एक वक़्त था जब नज़र ढूंढा करती थी उन्हें,आज उन को नज़र चुराते हुए देखा है. लोग मजाक उडाते हैं गरीबों का,हमने गरीबी से अमीरी का फासला देखा है. ग़र्दिश में आता है ऐसा भी मुकाम,हमने दिल को दिमाग से लड़ते हुए देखा है
शुक्रवार, 31 जुलाई 2009
हमने देखा है-(एक कविता ) गुरूशरण सिंह
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2 comments:
Sach kahaa aapne.
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
bahut khub
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