ताजमहल के नीचे तहखाने में
कुलबुलाने लगती हैं दो आत्मायें
चिपट जाती हैं वे एक दूसरे से
कहीं कोई अलग न कर दे उन्हें
दबे पाँव बाहर आती हैं
अपनी ही रची सुंदरता को निहारने
पर ये क्या ?
बाहर देखा तो यमुना जी सिमटती नजर आयीं
दूर-दूर तक गड़गड़ करती मशीनें
कोलाहल और धुँओं के बीच
काले पड़ते सफेद संगमरमर
कैमरों के फ्लैश के बीच
उनकी बनायी सुंदरता पर दावे करते लोग
अचानक उन्हें ताज दरकता नजर आया
वे तेजी से भागकर
अपनी-अपनी कब्रों में सिमट गए !!
कृष्ण कुमार यादव
गुरुवार, 16 जुलाई 2009
ताजमहल
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9 comments:
Sundar hai.
आज के दौर में यथार्थ को प्रतिबिंबित करती एक अनुपम कविता.
बहुत ही सुंदर रचना बेहतरीन प्रस्तुति आभार !
बहुत ही सुंदर रचना बेहतरीन प्रस्तुति आभार !
बाहर देखा तो यमुना जी सिमटती नजर आयीं
दूर-दूर तक गड़गड़ करती मशीनें
कोलाहल और धुँओं के बीच
काले पड़ते सफेद संगमरमर
....Yahin to ham prakriti ka nuksan kar rahe hain.
अजी दिल खुश कर दिया इस कविता ने. दिल की बात जुबान पर आ गई.
अचानक उन्हें ताज दरकता नजर आया
वे तेजी से भागकर
अपनी-अपनी कब्रों में सिमट गए !!
..KK Ji ki kavitaon ka kathya aur shilp dekhte banta hai..badhai.
अचानक उन्हें ताज दरकता नजर आया
वे तेजी से भागकर
अपनी-अपनी कब्रों में सिमट गए !!
waah waah..
bahut khoob..
atisundar..
सुन्दर प्रस्तुति.
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