अपना इतिहास पुराना भूल गये
विरासत का खज़ाना भूल गये
रिश्तों के पतझड मे ऐसे बिखरे
बसंतों का जमाना भूल गये
दौलत की अँधी दौड मे लोग
मानवता निभाना भूल गये
भूल गये गरिमा आज़ादी की
शहीदों का कर्ज़ चुकाना भूल गये
जो धर्म के ठेकेदार बने
खुद धर्म निभाना भूल गये
पत्नी के आँचल मे ऐसे उलझे
माँ का पता ठिकाना भूल गये
पर्यावरण पर भाषण देते देते
वो पेड लगाना भूल गये
भूल गये सब प्यार का मतलब
लोग हंसना हसाना भूल गये
5 comments:
निर्मला जी बेहद खूबसूरत गजल पेश की आपने । बधाई
इतनी सुन्दर रचना के लिए निर्मला जी का आभार...
namaskkar mam ji
thnx for comment..mein job krta hun mam ji...aap bahut acha likhte ho
bahut sundar
apki gazal achhi hai. bas bahar ki kami hai. bhav unnat hain. koshishen jaari rakho. chetan
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