जानता हूँ तुम वही हो,
वही शर्मीली गुड़िया,
बोलती आखें,
मुस्कुराता चेहरा,
सपनों में खोयी हुई,
दुनिया से बेगानी,
अपनी ही दुनिया में गुम-सुम,
जानता हूँ तुम वहीं हो।
पर वो मासूमियत ,
अब तुम में नहीं रही ,
कहते हैं वक्त के साथ,
सब कुछ बदल जाता है,
और तुम भी बदल गयी,
जानता हूँ तुम वहीं हो।।
पहले तुम खिलखिलाती थी,
बेवजह अचानक ही,
आज भी तुम वैसी ही दिखती हो ,
पर ............
अंदर से हताश
टूटी हुई,
जानता हूँ तुम वही हो,
और झेल रही हो,
टूटे हुए सपनों का दर्द ,
अपने कहे जाने वाले ,
अनजाने , अनकहे रिश्तों का दर्द,
जानता हूँ तुम वही हो।
सोमवार, 6 अप्रैल 2009
जानता हूँ तुम वही हो................[एक कविता] आमंत्रित कवियत्री " प्रिया प्रियम तिवारी " की कलम से
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
4 comments:
प्रिया जी , आपने मर्मस्पर्शी रचना प्रस्तुत की है , प्यार , मोहब्बत का सजीव चित्रण करती है ये रचना । । बेहतरीन प्रस्तुति के लिए धन्यवाद
marmik abhivyakti hai bahut bahut badhaai
अच्छा शब्द-संयोजन,
उत्तम भाव।
बधाई।
bhav gahare hai... psot is very nice.....
एक टिप्पणी भेजें