गौरव बन जाओ
सतलुज की लहरों ने
जीवन का सार बताया
सीमा मे बँध कर रहने का
गौरव उसने समझाया
कहा उन्मुक्त बहूँ तो
सिर्फ उत्पात मचाती हूँ
भाखडा बाँध मे हो सीमित
गोबिन्द सागर कहलाती हूँ
देती हूँ बिजली घर घर में
सब को सुख पहुँचाती हूँ
फसलों को पानी देती हूँ
सब की प्यास बुझाती हूँ
जो समाज क नियम् मे जीयेगा
वही समाज बनायेगा
जो तोडेगा इसके कायदे
वो उपद्रवी कहलायेगा
तुम भी अनुशासन मे रहना सीखो
मानव धर्म कमाओ
सतलुज की लहरों की मनिंद
देश के गौरव बन जाओ
4 comments:
निर्मला जी प्रभावपूर्ण और जीवन संदेश देती आपकी ये रचना । हिन्दी साहित्य मंच पर आपकी सहभागिता के लिए धन्यवाद । हमारा प्रयास हिन्दी विकास
सुन्दर रचना के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।
निर्मला जी, बहुत ही सुन्दर कविता....आभार
बहिन निर्मला कपिला जी।
सुन्दर रचना के लिए बधाई।
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