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रविवार, 31 मई 2015

मेरी पहली दोस्त

जब हुआ मेरा सृजन,
माँ की कोख से|
मैं हो गया अचंभा,
यह सोचकर||

कहाँ आ गया मैं,
ये कौन लोग है मेरे इर्द-गिर्द|
इसी परेशानी से,
थक गया मैं रो-रोकर||

तभी एक कोमल हाथ,
लिये हुये ममता का एहसास|
दी तसल्ली और साहस,
मेरा माथा चूमकर||

मेरे रोने पर दूध पिलाती,
उसे पता होती मेरी हर जरूरत|
चाहती है वो मुझे,
अपनी जान से  भी बढ़कर||

उसकी मौजूदगी देती मेरे दिल को सुकून,
जिसका मेरी जुबां पर पहले नाम आया|
पहला कदम चला जिसकी,
उंगली पकड़कर||

6 comments:

कहकशां खान ने कहा…

बहुत ही खूबसूरत रचना प्रस्‍तुत करने के लिए धन्‍यवाद।

Rishabh Shukla ने कहा…

SHUKRIYA kAHKASHA KHAN JI

दिगम्बर नासवा ने कहा…

बहुत ही भाव पूर्ण .. लाजवाब रचना है ...

Unknown ने कहा…

मातृत्व का चित्रण बहुत ही सहज और मार्मिक ढंग से किया आपने।

Unknown ने कहा…
इस टिप्पणी को एक ब्लॉग व्यवस्थापक द्वारा हटा दिया गया है.
Rishabh Shukla ने कहा…

नीशू जी और दिगंबर जी आप दोनों का बहूत आभार |