अब दुःख दर्द में भी मैने मुस्कुराना सीख लिया
जब से अज़ाब को छिपाने के सलीका सीख लिया। बेवफाओं से इतना पड़ा पाला कि अब
झूठे कसमें वादों से अब मैं कभी ना टूटूंगा
वो कत्लेआम के शौक़ीन हैं तो क्या हुआ
सुनसान रास्तों पर चलने से अब डर नहीं लगता
शब्दार्थ :::
इल्तिफ़ात- मित्रता
ग़ार- विश्वासघात
इल्तिफ़ात- मित्रता
ग़ार- विश्वासघात
अज़ाब - पीड़ा
2 comments:
बहुत सुंदर
रचना बहुत सुंदर है
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