हम इस दुनिय मे कैसे जिये,
रात जैसे अंधेरे मे हम कैसे चले !
हम आगे तो है साफ लेकिन,
पिछे की बुराईयों को कैसे मले!
लोग तो अब न जाने,
क्या-क्या कहने लगे !
आखो से अब आसु,
बहने लगे !
लोगो कि चंद बाते पुकारे मुझे,
पर ये कटु जहर हम सहने लगे !
लोग कहते गये और हम सहते गये,
और जिंदगी की ये जंग लङते गये !
रात जैसे अंधेरे मे हम कैसे चले !
हम आगे तो है साफ लेकिन,
पिछे की बुराईयों को कैसे मले!
लोग तो अब न जाने,
क्या-क्या कहने लगे !
आखो से अब आसु,
बहने लगे !
लोगो कि चंद बाते पुकारे मुझे,
पर ये कटु जहर हम सहने लगे !
लोग कहते गये और हम सहते गये,
और जिंदगी की ये जंग लङते गये !
3 comments:
uchit likha....
nice
thanks
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