( 1 ) सोना तपता आग में , और निखरता रूप .
कभी
न रुकते साहसी , छाया हो या धूप.
छाया हो या धूप ,
बहुत सी बाधा आयें .
कभी न बनें अधीर ,नहीं मन में घवराएँ .
'ठकुरेला'
कवि कहें , दुखों से कैसा रोना .
निखरे सहकर कष्ट
, आदमी हो या सोना .
( 2 )
होता है मुश्किल वही, जिसे कठिन लें मान.
करें अगर अभ्यास तो, सब कुछ है आसान.
सब कुछ है आसान, बहे पत्थर से पानी.
यदि खुद कोशिश करे, मूर्ख बन जाता ज्ञानी.
'ठकुरेला' कवि कहें, सहज पढ़ जाता तोता.
कुछ भी नहीं अगम्य, पहुँच में सब कुछ होता.
( 3 )
मानव की कीमत तभी,जब हो ठीक चरित्र.
दो कौड़ी का भी नहीं, बिना महक का इत्र.
बिना महक का इत्र, पूछ सदगुण की होती.
किस मतलब का यार,चमक जो खोये मोती.
'ठकुरेला' कवि कहें,गुणों की ही महिमा सब.
गुण,अबगुन अनुसार,असुर,सुर,मुनिगन,मानव.
( 4 )
पाया उसने ही सदा,जिसने किया प्रयास.
कभी हिरन जाता नहीं, सोते सिंह के पास.
सोते सिंह के पास,राह तकते युग बीते.
बैठे -ठाले रहो, रहोगे हरदम रीते.
'ठकुरेला' कवि कहें,समय ने यह समझाया.
जिसने भी श्रम किया,मधुर फल उसने पाया
( 5 )
धीरे धीरे समय ही , भर देता है घाव.
मंजिल पर जा पहुंचती,डगमग करती नाव.
डगमग करती नाव,अंततः मिले किनारा.
मन की पीड़ा मिटे,टूटती तम की कारा.
'ठकुरेला' कवि कहें, ख़ुशी के बजें मजीरे.
धीरज रखिये मीत, मिले सब धीरे,धीरे.
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2 comments:
very beautiful
bahut sundar
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