घर के ऊपर घर को देखा
और भागते शहर को देखा
किसे होश है एक दूजे की
मजलूमों पे कहर को देखा
तोता भी है मैना भी है
मगर प्यार में कसर को देखा
हाथ मिलाते लोगों के भी
मुस्कानों में जहर को देखा
चकाचौंध है अंधियारे में
थकी थकी सी सहर को देखा
एक से एक भक्त लक्ष्मी के
कोमलता पे असर को देखा
पानी को अब खेत तरसते
शहर बीच में नहर को देखा
बढ़ता जंगल कंकरीट का
जहाँ सिसकते शजर को देखा
यहाँ काफिया यह रदीफ है
सुमन तो केवल बहर को देखा
बुधवार, 22 जून 2011
मुस्कानों में जहर को देखा.............श्यामल सुमन
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8 comments:
हाथ मिलाते लोगों के भी
मुस्कानों में जहर को देखा
यही ज़ि्न्दगी की कडवी सच्चाई है…………बहुत सुन्दर और गहन अभिव्यक्ति।
हाथ मिलाते लोगों के भी
मुस्कानों में जहर को देखा
Akdam sateek. Sachchaai ka bayaa karti ek baut hi achchhi post jo vyangy ka swaad bhi deti hai. Thanks
muskan etani bikher do ki jivan ka har jahar ghutne tek de.
बहुत सुन्दर और गहन अभिव्यक्ति।
@पानी को अब खेत तरसते
शहर बीच में नहर को देखा !
दिल को छू लेने वाली छोटी बहर की सुंदर ग़ज़ल.
बधाई और शुभकामनाएं .
आप सबके प्रति विनम्र आभार - नियमित संपर्क-कामना के साथ
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
http://meraayeena.blogspot.com/
http://maithilbhooshan.blogspot.com/
Socailly relevent satire in gazal genre .Sorry I do not have hindi font .Every coplet (Ashaar )is beautiful and loaded with satire and paradoxes .
हाथ मिलाते लोगों के भी
मुस्कानों में जहर को देखा
चकाचौंध है अंधियारे में
थकी थकी सी सहर को देखाaajkal ke mahole ke baare main likhi saarthak post,jamane ki hakikat bayaan kar di aapne.badhaai.
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