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सोमवार, 30 मई 2011

कविता..................@दीपक शर्मा

वैसे ही बहुत कम हैं उजालों के रास्ते,
फिर पीकर धुआं तुम जीतो हो किसके वास्ते,

माना जीना नहीं आसान इस मुश्किल दौर में
कश लेके नहीं निकलते खुशियों के रास्ते

जिन्नात नहीं अब मौत ही मिलती है रगड़ कर,
यूँ सूरती नहीं हाथों से रगड़ के फांकते ,

तेरी ज़िन्दगी के साथ जुडी कई और ज़िन्दगी,
मुकद्दर नहीं तिफ्लत के कभी लत में वारते ,

पी लूं जहाँ के दर्द खुदा कुछ ऐसा दे नशा ,
"दीपक" नहीं नशा कोई गाफिल से पालते ,



विश्व तम्बाकू निषेध दिवस पर कवि दीपक शर्मा द्वारा रचित रचना

2 comments:

prerna argal ने कहा…

bahut saarthak rachanaa.badhaai aapko.



please mere blog main bhi aaiye.thanks

श्यामल सुमन ने कहा…

एक सार्थक सन्देश रचना के माध्यम से.

सादर
श्यामल सुमन
+919955373288
www.manoramsuman.blogspot.com