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शुक्रवार, 6 मई 2011

कैक्टस की व्यथा............डा.राजेंद्र तेला,"निरंतर"


क्यों मुझ पर हँसते हो?
मुझ से नफरत करते हो
बिना कारण दुःख देते हो
अपनी इच्छा से कैक्टस
नहीं बना
मुझे इश्वर ने ये रूप दिया
उसकी इच्छा का
सम्मान करो
मुझ से भी प्यार करो
माली की ज़रुरत नहीं
मुझको
स्वयं पलता हूँ
कम पानी में जीवित
रहकर
पानी बचाता हूँ
जिसके के लिए तुम
सब को समझाते
वो काम में खुद ही
करता
भयावह रेगिस्तान में
हरयाली का अहसास कराता
खूबसूरत
फूल मुझ में भी खिलते
मेरे तने से तुम भोजन पाते
आंधी तूफानों को
निरंतर हिम्मत से झेलता
कभी किसी से
शिकायत नहीं करता
तिरस्कार सब का सहता
विपरीत परिस्थितियों
में जीता हूँ
फिर भी खुश
रहता हूँ

2 comments:

नीलांश ने कहा…

bahut acchi rachna...
ek sakratmak sandesh de rahi hai..

Raaghav ने कहा…

very good,cactus teaches to live in adverse conditions