ये जग मुसाफिर खाना,
थोड़े दिन का ठिकाना,
दिन दश के व्यवहार में,
सतकर्म कुछ कर जाना ।
एक भवर जीवन जगत,
मुश्किल होगा बच पाना,
कटु वचन विष से कड़वा,
अमृत ही वर्षा जाना।
अमीर गरीब का कल्याण कर,
काया-कलेश मोह भगाना,
श्रद्धावान हृदय हो निरंतर,
तुम ऐसा प्रेरणा दे जाना ।
मन का भेद भाव मिटे,
जंजीर टूटे माया का,
त्याग,समर्पण, मंगल कामना,
मानवता का नीव चला जाना।
जीवन की कहानी अमर रहे,
सौभाग्य बने धरती पर आना,
कॉंटों का जाल दुनियॉं,
सम्भव नही कुशल निकल जाना।
तुम्हारा वक्त पुरा हुआ,
प्रकृति कानून ही समझाना,
ये जग मुसाफिर खाना,
थोड़े दिन का ठिकाना ।
गुरुवार, 21 अप्रैल 2011
ये जग मुसाफिर खाना-----(कविता)------मीना मौर्या
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7 comments:
बहुत खूब !
बहुत बढ़िया प्रेरक भावपूर्ण रचना
kato ka
jal duniya samvb nahi kusal nikal jana.ye line bahut sundar.bdhe
nice poem...
bahut achha
bahut sunder rachanaa bahut bahut badhaai
Bahut badhiyaa kavitaa hai
by
Hindi Sahitya
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