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शनिवार, 12 फ़रवरी 2011

क्यूकी बाप भी कभी बेटा था ......संतोष कुमार "प्यासा"


एक जमाना था जब लड़के अपने घर के बड़े बुजुर्गों का कहना सम्मान करते थे उनका कहा मानते थे ! कोई अपने पिता से आंख मिलाकर बात भी नहीं करता था ! उस समय कोई अपने पिता के सामने कुर्सी या पलंग पर भी नहीं बैठता था ! तब प्यार जैसी बात को अपने बड़े बुजुर्गों से बंटाना "बिल्ली के गले में घंटी बाधने" जैसा था ! प्रेम-प्रसंग तो सदियों से चला आ रहा है ! लेकिन पहले के प्रेम में मर्यादा थी ! उस समय यदि किसी के पिता को पता चल जाता था की उसका बेटा या बेटी किसी से नैन लड़ाते( प्रेम करते) घूम रहे है तो समझों की उस लड़के या लड़की की शामत आ गई !
 पिता गुस्से में लाल पीला हो जाता था ! तरह तरह की बातें उसके दिमाग में गूंजने लगती थी ! मन ही मन सोंचता था "समाज में मेरी कितनी इज्ज़त है, नालायक की वजह से अब सर उठा कर भी नहीं चल सकता, सीधे मुह जो लोग बात करते डरते थे अब वही मुह पर हजारों बातें सुनाएगे, मेरी इज्ज़त को मिट्टी में मिला दिया इसने" कही ऐसा करने वाली लड़की होती तो उसके हाँथ पैर तोड़ दिए जाते थे, घर से निकलना बंद कर दिया जाता था ! साथ ही लड़के या लड़की को खुद शर्म महसूस होती थी ! लड़कियों का तो गली मोहल्ले से निकलना मुश्किल हो जाता था ! लोफ़र पार्टी तरह तरह की फब्ती कसते थे ! कहते थे " देखो तो इशक लड़ाती फिरती है, जवानी संभाले नहीं संभलती...." कभी कभी तो बेचारी को घर की इज्ज़त और कायली के कारण आत्महत्या भी करनी पड़ जाती थी ! इसके विपरीत कुछ लड़के अपने प्यार को बुजुर्गों से बाटना बुरा नहीं समझते थे ! ऐसे विचार के युवकों को उस समय बद्त्मीच और संस्कारहीन समझा जाता था ! यहाँ तक की उस समय फ़िल्मी गाना गाना भी असभ्य समझा जाता था ! समय के साथ बाप और बेटों के विचारों में बदलाव आया ! अब बेटा अपने प्यार के बारे में अपने पिता से आसानी से कहता है और पिता सरलता से सुनता है ! समय ने बेटियों को भी इतना सक्षम बना दिया है की वे भी अब अपने मन की बात अपने पिता से बेहिचक कह सकती है ! वर्तमान समय में पिताओं की भूमिका "शादी के कार्ड छपवाने और मैरिज हाल बुक करने तक ही रह गई है !" अब बेटा सीधे एक लड़के को घर में लाता है और कहता है "डैड मै इससे प्यार करता हूँ !" यह सुनकर अब कोई पिता गुस्से से लाल पीला नहीं होता और न ही वह समाज के बारे में सोंचता है ! क्युकी उसे पता है की आज हर दूसरे घर में यही हो रहा है ! पिता मन ही मन सोंचता है "अच्छा हुआ कम से कम एक जिम्मेवारी तो ख़त्म हुई !अब माता पिताओं को "बहु और दामाद" ढूँढने में ज्यादा दिक्कत नहीं होती ! शायद ऐसा समय के बदलाव के कारण हुआ है ! समय ने पिता को एहसास दिला दिया है की "बाप भी कभी बेटा था" ! पिता भी सोंच लेता है की एक समय था जब हमने भी किसी से प्यार किया था, लेकिन वह समय स्थिति ऐसी नहीं थी की हम अपने प्यार के बारे में किसीको बता पाते ! आज के पिताओं ने अपने पिताओं की गलती को दोहराना बंद कर दिया है ! इस व्यवस्था में अच्छाई और बुराई दोनों है !
अच्छाई यह की, अब माता पिता बच्चों की भावनाओ को समझने लगे है, उनकी इच्छाओं और भावनाओं को दबाना बंद कर दिया है ! जिससे बेटा या बेटी "कुंठा उन्माद तनाव और आत्महत्या जैसी बुराई से बचे रहते है ! पहले प्यार के बारे में दोनों पक्षों के परिवारों को पता होने के बावजूद शादी होना संभव न था ! जिससे जवानी के जोश और प्यार के जूनून में बच्चे आत्महत्या कर लेते थे !

बुराई यह की, पिताओ के द्वारा प्राप्त इस मानसिक स्वतंत्रता का आज के युवा गलत फायदा उठा रहे है ! पहले के युवा घर की इज्ज़त और सामाजिक भय के कारण अपने जीवनसाथी का चुनाव बड़ी सावधानी से करते थे ! लेकिन आज के नवयुवाओं ने प्यार को खेल समझ लिया है ! बॉयफ्रेंड या गर्लफ्रेंड बनाना एक शौक समझ लिया है ! घर का दबाव न होने के करण आज के युवा गैर्जिम्मेवारी ढंग से अपने साथी कचुनव करते है !फलत: चार दिन बाद प्रेमप्रसंग टूट (ब्रेकउप) जाता है ! बेतिओं को भी घर का डर नहीं रह गया ! ऐसी दशा में कभी कभी ऐसी स्थिति पैदा हो जाती है जो शादी के बाद होनी चाहिए ! बुजुर्गों ने बच्चो को मन की बात कहने की छूट क्या दे दी ! युवावर्ग तो बड़ो का सम्मान करना ही भूल गए ! घर की मन मर्यादा की कोई चिंता नहीं शायद इसी वजह से आज तलाक ज्यादा हो रहे है ! इस स्वतंत्रता का आज के युवा इस तरह लाभ उठा रहे है की "प्रेम और प्रेमियों का व्याकरण" ही बदल गया ! घर, समाज और मान अपमान का डर न होने के कारण कुछ युवा बलात्कार जैसे पाप कर डालते है ! जो इस स्वतंत्रता को शर्मसार कर डालता है ! बाप तो यह समझ गया की "वो भी कभी बेटा था" पर शायद बेटा यह भूल गया है की "वह भी कभी बाप बनेगा !