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मंगलवार, 22 फ़रवरी 2011

मत बाँटो देश (लेख)-----मिथिलेश

नया युग वैज्ञानिक अध्यात्म का है । इसमें किसी तरह की कट्टरता मूढता अथवा पागलपन है। मूढताए अथवा अंधताये धर्म की हो या जाति की अथवा फिर भाषा या क्षेत्र की पूरी तरह से बेईमानी हो चुकी है । लेकिन हमारें यहां की राजनीति इतनी भ्रष्ट हो गई है कि उन्हे देश को बाँटने के सिवाय कोई और मुद्दा ही नहीं दिखता । कभी वे अलग राज्य के नाम पर राजनीति कर रहे हैं तो कभी जाति और धर्म के नाम पर । जिस दश में लोग बिना खाए सो जा रहे हो , कुपोषण का शिकार हो रहें हो , लड़किया घर से निकलने पर डर रही हो उस देश में ऐसे मुद्दों पर राजनीति करना मात्र मूर्खता ही कही जा सकती है । आज से पाँच-छह सौ साल पहले यूरोप जिस अंधविश्वास दंभ एंव धार्मिक बर्बरता के युग में जी रहा था, उस युग में आज अपने देश को घसीटने की पूरी कोशिश की जा रही है जो किसी भी तरह से उचित नही है। जो मूर्खतायें अब तक हमारे निजी जीवन का नाश कर रही थी वही अब देशव्यापी प्रागंण में फैलकर हमारी बची-खुची मानवीय संवेदना का ग्रास कर रही है । जिनकें कारण अभी तक हमारे व्यक्तित्व का पतन होता रहा है जो हमारी गुलामी का प्रमुख कारण रही, अब उन्ही के कारण हमारा देश एक बार फिर तबाही के राह पर है । धर्म के नाम पर , जाति के नाम पर,क्षेत्र के नाम, और भाषा के नाम पर जो झगड़े खड़े किए जा रहे है उनका हश्र सारा देश देख रहा है ।
कभी मंदिर और कभी मस्जिद तो कभी जातीयता को रिझाने की कशिश । दुःख तो तब और होता है जब इस तरह के मामलो में शिक्षित वर्ग भी शामिल दिखता है । ये सब किस तरह की कुटिलताएँ है और इनका संचायन वे लोग कर रहे है जो स्वयं को समाज का कर्णधार मानते हैं । इन धर्मो एवं जातियो के झगड़ो को हमारी कमजोरियों दूर करने का सही तरीका केवल यही है कि देश के कुछ साहसी एंव सत्यनिष्ठ व्यक्ति इन कट्टरताओं की कुटिलता के विरुद्ध एक महासंग्राम छेड़ दें। जब तक यह मूर्खता नष्ट न होगी, तब तक देश का कल्याण-पथ प्रशस्त ना होगा । समझौता कर लेनें, नौकरियों का बँटवारा कर लेने और अस्थायी सुलह नामों को लिखकर, हाथो में कालीख पोत लेने से ,तोड़फोड़ कर लेने से कभी राष्ट्रीयता व मानवीयता का उपवन नहीं महकेगा । हालत आज इतनी गई-गुजरी हो गई है कि व्यापक महांसंग्राम छेडे बिना काम चलता नहीं दिखता । धर्म , क्षेत्र एवं जाति का नाम लेकर घृणित व कुत्सित कुचक्र रचनें वालों की संख्या रक्तबीज तरह बढ रही है । ऐसे धूर्तो की कमी नहीं रही, पर मानवता कभी भी संपूर्णतया नहीं हुई और न आगे ही होगी, लेकिन बीच-बीच में ऐसा अंधयूग आ ही जाता है , जिसमें धर्म , जाति एवं क्षेत्र के नाम पर झूठे ढकोसले खड़े हो जाते हैं । कतिप्रय उलूक ऐसे में लोगो में भ्रातियाँ पैदा करने की चेष्टा करने लगते है । भारत का जीवन एवं संस्कृति वेमेल एवं विच्छन्न भेदभावों की पिटारी नहीं है । जो बात पहले कभी व्यक्तिगत जीवन में घटित होती थी, वही अब समाज की छाती चिरने लगें । भारत देश के इतिहास में इसकी कई गवाहिँया मेजुद हैं । हिंसा की भावना पहले कभी व्यक्तिगत पूजा-उपक्रमो तक सिमटी थी, बाद में वह समाज व्यापिनी बन गयी । गंगा, यमुना सरस्वती एवं देवनंद का विशाल भू-खण्ड एक हत्याग्रह में बदल गया । जिसे कुछ लोग कल तक अपनी व्यक्तिगत हैसियत से करते थे, अब उसे पूरा समाज करने लगा । उस समय एक व्यापक विचार क्रान्ति की जरुरत महसूस हुई । समाज की आत्मा में भारी विक्षोभ हुआ ।

इस क्रम में सबसे बडा हास्यापद सच तो यह है कि जो लोग अपने हितो के लिए धर्म , क्षेत्र की की दुहाई देते है उन्हे सांप्रदायिक कहा जाता है, परन्तु जो लोग जाति-धर्म क्षेत्र के नाम पर अपने स्वार्थ साधते हैं , वे स्वयं को बडा पुण्यकर्मि समझते हैं । जबकि वास्तविकता तो यह है कि ये दोंनो ही मूढ हैं , दोनो ही राष्ट्रविनाशक है । इनमें से किसी को कभी अच्छा नहीं कहा जा सकता । ध्यान रहे कि इस तरह की मुढतायें हमारे लिए हानिकारक ही साबित होंगी , अंग्रजो ने तो हमारे कम ही टुकडे किय, परन्तु अब हम अगर नहीं चेते तो खूद ही कई टूकडों में बँट जायेंगे, क्या भरोसा है कि जो चन्द स्वार्थि लोग आज अलग राज्य की माँग कर रहे हैं वे कल को अलग देश की माँग ना करे, इस लिए अब हमें राष्ट्रचेतना की जरुरत है, हो सकता है शुरु में हमें लोगो का कोपाभजन बनना पड़े , पर इससे डरने की जरुरत नही है । तो आईये मिलकर राष्ट्र नवसंरचना करने का प्रण लें ।

7 comments:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

आईये मिलकर राष्ट्र नवसंरचना करने का प्रण लें!
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बहुत बढ़िया सन्देश दिया है आपने इस आलेख में!

DR. ANWER JAMAL ने कहा…

Nice post.

OM KASHYAP ने कहा…

vicharniya sandesh

दिगम्बर नासवा ने कहा…

सच है आज देश की जरूरत है एकता बनाए रखने की .... विश्व और विशेष कर देश के जो हालात हैं .... अगर हम मिल के नहीं रहे तो खो जायेंगे ...

शिव शंकर ने कहा…

हमारें यहां की राजनीति इतनी भ्रष्ट हो गई है कि उन्हे देश को बाँटने के सिवाय कोई और मुद्दा ही नहीं दिखता । कभी वे अलग राज्य के नाम पर राजनीति कर रहे हैं तो कभी जाति और धर्म के नाम पर ।

सही कहा आपने हमारे यहां की राजनीति इतनी गंदी हो गयी है की भारत की समस्या को नजरअंदाज करते हुए नेता देश में दिन प्रतिदिन एक नये भ्रष्टाचार को अंजाम दे रहे है। भारत समस्याओ से घिरता जा रहा है लेकिन नेता अपने कुर्सी को लेकर ही चिंता मग्न है। देश में लोगो के बीच एक नई चेतना जगाने की जरुरत है,जिससे इन भ्रष्ट नेताओं की रणनीति सफल न हो ।

साथर्क लेख,आभार

डॉ. दिलबागसिंह विर्क ने कहा…

तो आईये मिलकर राष्ट्र नवसंरचना करने का प्रण लें --- aahvahn aapka achchha hai , lekin hmara svarth aade aa jata hai

--- sahityasurbhi.blogspot.com

Shikha Kaushik ने कहा…

बहुत सार्थक प्रस्तुति .विचारणीय आलेख.आभार.....