राजा-- देखो कैसा जमाना आ गया है सिफारिश से आज कल साहित्य सम्मान मिलते हैं।
शाम -- वो कैसे?हमारे पडोसी ने किसी महिला पर कुछ कवितायें लिखी। उसे पुरुस्कार मिला।
उसी महिला पर मैने रचनायें लिखी मुझे कोई पुरस्कार नही मिला।
तुम्हें कैसे पता है कि जिस महिला पर रचना लिखी वो एक ही महिला है?
राजा--- क्यों कि वो हमारे घर के सामने रहता है । लान मे बैठ जाता और मेरी पत्नि को देख देख कर कुछ लिखता रहता था। लेकिन मै उसके सामने नही लिखता मैं अन्दर जा कर लिखता था। सब से बडा दुख तो इस बात का है कि मेरी पत्नी उस मंच की अध्यक्ष थी और उसके हाथों से ही पुरुस्कार दिलवाया गया था।
शाम-- अरे यार छोड । तम्हें कैसे पुरस्कार मिलता क्या सच को कोई इतने सुन्दर ढंग से लिख सकता है जितना की झूठ को। द्दोर के ढोल सुहावने लगते हैं।उसने जरूर भाभी जी की तारीफ की होगी और तुम ने उल्टा सुल्टा लिखा होगा। फाड कर फेंक दे अपनी कवितायें नही तो कहीं भाभी के हाथ लग गयी तो जूतों का पुरस्कार मिलेगा।
11 comments:
सही है :):)
पुरस्कार कैसे मिलते हैं इस सच को बयाँ करती लघु कथा .
अफ़सोस साहित्य भी इस भाई-भतीजावाद , चाटुकारिता से बच नहीं पाया
सुंदर लघु कथा के लिए बध ----- sahityasurbhi.blogspot.com
धन्यवाद जी।
अच्छी कथा....पर कोई कवि अपनी पत्नी के बारे में उल्टा-पुल्टा क्यों लिखेगा---सच को भी सुन्दर ढंग से लिखा जा सकता है....यही साहित्यकार का काम है...
बहुत रोचक व्यंग..बहुत सुन्दर
लघुकथा भी अच्छी और व्यंग भी अच्छा परन्तु अंत में जूता शब्द के इस्तेमाल ने वीभत्स रस डालकर मज़ा किरकिरा कर दिया.
आज के परिपेक्ष का सही वर्णन -
रोचक व्यंग .
बधाई .
सच कहा आपने , सिफारिश से मिलने वाले पुरस्कार में कोई मज़ा नहीं ।
sateek vyang...ath puruskar kand....
bahut had tak such likh diya aapne
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