किस बात की दे रहा सज़ा मुझे
है क्या गुनाह मेरा , बता मुझे .
हिम्मत नहीं अब और सहने की
रुक भी जा , ऐ दर्द न सता मुझे .
या खुदा ! अदना-सा इंसान हूँ
टूट जाऊँगा , न आजमा मुझे .
क्यों चुप रहा उसकी तौहीन देखकर
ये पूछती है , मेरी वफा मुझे .
आखिर ये बेनूरी तो छटे
किन्ही बहानों से बहला मुझे .
एक अनजाना सा खौफ हावी है
अब क्या कहूँ 'विर्क' हुआ क्या मुझे
बुधवार, 16 फ़रवरी 2011
ऐ दर्द न सता मुझे-----(गजल)----दिलबाग विर्क
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5 comments:
aapki likhi hui gazal bahut pasand aayi.....
क्यों चुप रहा उसकी तौहीन देखकर
ये पूछती है , मेरी वफा मुझे ....बहुत खूब
सुन्दर गज़ल...
बेहतरीन ललकार, दर्द से।
दिल को छू लेनी वाली रचना लगी , बधाई
बहुत शानदार.
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