धरा पर अवतिरत हुआ
लिपटा मोह माया में भाई
आज खुशी मना लो
कल होगी अंतिम विदाई ।
खुशियों का बसेरा छोटा
जीवन पहाड़ व रवाई
सुख-समृद्धि धन दौलत
खोयेगा बचेगा एक पाई ।
मानव मन परिवर्तन शील
स्थिर टिक नहीं पाई
वर्तमान तेरा अच्छा है
मत सोच भविष्य होगा भाई ।
अकेला चिराग देगा रोशनी
संसार अंधेरा कुआ राही
चिकने डगर पर गड्ढे हैं
शूल अनगिनत न देत दिखाई ।
टुक-टुक मत देख तस्वीर
सामने बुढापा जीवन बनी दवाई
शुरुआत तो अच्छी थी
अन्त बड़ा ही दुःखदाई।।
इन्द्र धनुष रंग जीवन
सब रंग न देत दिखाई
सजीला तन बना लचीला
सास लेना दुःखदाई ।
वास्तविकता विपरित इसके है
मानव मन आये चतुराई
स्वयं संसार में नाम कर
इतिहास बना ले अंतिम विदाई । ।
10 comments:
wah..ji ...wakai aantim vidaai muskil hai...
sundar rachna...
सशक्त रचना।
bahut hee achha
jeevan kee yenhi sachai.
bahut sunder rachana
hindi kavita ki ek bahut sashakt prastuti....
गजब का मनोभाव समेटे लाजवाब रचना लगी, बधाई आपको ।
hindi apni matr bhasha hai
iska saman krna hr hinustani ke lie gorv ki bat hai
Bhoutikta se adhyatam ki udaan pe le jaane wali abhivyakti ! or vo bhi bhoutikta ke daur me. good work keep it up.
achhi parstuti,hardya ko chhu ne wali kavita hain.
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