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गुरुवार, 13 जनवरी 2011

इक जाम फुर्सत में .... {गजल} सन्तोष कुमार "प्यासा"

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तू परछाई है मेरी, तो कभी मुझे भी दिखाई दिया कर
ऐ जिंदगी ! कभी तो इक जाम फुर्सत में मेरे संग पिया कर

मै भी इन्सान हूँ, मेरे भी दिल में बसता है खुदा
मेरी नहीं तो न सही, कम से कम उसकी तो क़द्र किया कर

इनायत समझ कर तुझको अबतलक जीता रहा हूँ मै
मिटा कर क़ज़ा के फासले, मै तुझमे जियूं तू मुझमे जिया कर

मेरा क्या है ? मै तो दीवाना हूँ इश्क-ऐ-वतन में फनाह हो जाऊंगा
वतन पे मिटने वालों की न जोर आजमाइश लिया कर...........

7 comments:

Pratik Maheshwari ने कहा…

वाह संतोष कुमारजी.. क्या खूब लिखा है आपने..
बहुत ही ज़बरदस्त प्रस्तुति...

आभार

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

काश जिन्दगी को तनिक फुर्सत भी होती।

Kailash Sharma ने कहा…

बहुत सुन्दर..हरेक शेर लाज़वाब..कहाँ फुर्सत है जिंदगी को सुकून से एक जाम पीने की...

Unknown ने कहा…

lazavab prastuti.....

Neeraj Kumar ने कहा…

बहुत ही अच्छी लगी आपकी रचना और आपके ख्याल...

Mithilesh dubey ने कहा…

लाजवाब रचना संतोष जी ।

बेनामी ने कहा…

बढ़िया गजल!
लोहड़ी और उत्तरायणी की सभी को शुभकामनाएँ!