गंगा की घाटों पे वो फिरता,
न जाने है कितना अकेला।
आज की शाम,
जाने कब से निर्झर है ये शांत।
युगों युगों से देखा है जिसने कई सदी।
शाम की आरती का है समय,
तन्हाईयों ने कर दिया फिर से अकेला।
गंगा की घाटों पे वो फिरता,
न जाने है कितना अकेला।
ये शाम अब भी वैसा है,
आसमां में चाँद,
गँगा की धार में बहते कई नाव।
गँगा के उस पार अब भी दिखता है इक गाँव।
वो लोगों का जमावड़ा भी वैसे ही है,
जैसा कभी हुआ करता था पहले।
बदला तो है बस जहा मेरा,
कल साथ थे सब,
आज हूँ अकेला।
गंगा की घाटों पे वो फिरता,
न जाने है कितना अकेला।
इक रुकी रुकी सी धुँधली तस्वीर,
दिखती है मुझको गँगा तीर।
इक नाव अभी भी दिखता है,
किसी की बाट जोहता हुआ बिल्कुल अधीर।
इक प्रार्थना का दीप जलता,
गँगा की धार में बहता है,
मेरी भावना के सीप चुनकर,
कुछ अधूरे ख्वाब को गहता है।
मेरा मन मुझसे कहता है,
यादों में जी लेता हूँ फिर,
गुजरे दिनों की हर इक वेला।
गंगा की घाटों पे वो फिरता,
न जाने है कितना अकेला।
11 comments:
इक रुकी रुकी सी धुँधली तस्वीर,
दिखती है मुझको गँगा तीर।
कई अर्थों को समेटे हुए अच्छी लगी , बधाई
गंगा की प्रचीनता जिसमें सब देखा है, वह तो साथ है।
"मेर्री क्रिसमस" की बहुत बहुत शुभकामनाये !
मेरी नई पोस्ट "जानिए पासपोर्ट बनवाने के लिए हर जरूरी बात" पर आपका स्वागत है
गंगा का घाट ...और उस पर की गयी आरती ...
अच्छी प्रस्तुति
दो भावों को परिलक्षित करती बेहतरीन कविता।
... sundar rachanaa !!!
Achi rachna hai lagta hai ganga ka wah sundar roop dekha hai par ab kahaan? rahi wo ganga.
अच्छी कविता . बधाई और आभार .
purani yaaden taja ho ayi........
Thanks to all my dears to inspire me.
maa ganga ki pavan laharei jab darashti k smaksh hoti hai to us aalokik , madur laharo ke sangeet mai , manushey itna madhish hi jata hai ki usko apni tanhie , sukh, dukh ki khabar hi nahi rehti, maine jab ,jab apni maa ganga ki lahro ke aanchal mai sharn li hai man her prakaar k vishad se mukat ho jata hai .iseliye to use kahte hai uski lahro mai hai jeevan.
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