कहते हैं रूप भगवान का होते हैं बच्चे
भला फिर क्यूँ फिर भूख से तडपते, बिलखते है बच्चे ?
इल्म की सौगात क्यूँ न मयस्सर होती इन्हें
मुफलिसी का बोझ नाजुक कंधो पर ढोते हैं बच्चे
ललचाई हैं नजरें, ख़ुशी का "प्यासा" है मन
फुटपाथ को माँ की गोद समझ कर सोते है बच्चे
दर-दर की ठोकरें लिखती है, किस्मतें इनकी
भूख की हद जब होती है पार, जुर्म का बीज फिर बोते हैं बच्चे
भला क्या दे पायेंगें कल, ये वतन को अपनी
कुछ पाने की उम्र में खुद को खोते हैं बच्चे ......
6 comments:
kuroop yatharth ka steek ankan
Very nice post.Please visite my post.
सुंदर रचना . कभी समय मिले तो हमारे ब्लॉग //shiva12877.blogspot.comपर भी आएं
बेहतरीन रचना..
पढ़कर अच्छा लगा..
बहुत अच्छा !
Bahut badiya sirG...
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