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बुधवार, 15 दिसंबर 2010

बच्चे (कविता) सन्तोष कुमार "प्यासा"

कहते हैं रूप भगवान का होते हैं बच्चे
भला फिर क्यूँ फिर भूख से तडपते, बिलखते  है बच्चे ?
इल्म की सौगात क्यूँ न मयस्सर होती इन्हें
मुफलिसी का बोझ नाजुक कंधो पर ढोते हैं बच्चे
ललचाई हैं नजरें, ख़ुशी का "प्यासा" है मन
फुटपाथ को माँ की गोद समझ कर सोते है बच्चे
दर-दर की ठोकरें लिखती है, किस्मतें इनकी 
भूख की हद जब होती है पार, जुर्म का बीज फिर बोते हैं बच्चे
भला क्या दे पायेंगें कल, ये वतन को अपनी
कुछ पाने की उम्र में खुद  को खोते  हैं बच्चे ......

6 comments:

डॉ. दिलबागसिंह विर्क ने कहा…

kuroop yatharth ka steek ankan

प्रेम सरोवर ने कहा…

Very nice post.Please visite my post.

शिवा ने कहा…

सुंदर रचना . कभी समय मिले तो हमारे ब्लॉग //shiva12877.blogspot.comपर भी आएं

Pratik Maheshwari ने कहा…

बेहतरीन रचना..
पढ़कर अच्छा लगा..

Unknown ने कहा…

बहुत अच्छा !

Unknown ने कहा…

Bahut badiya sirG...