ऐ रात की तन्हाईयों,
क्यों गुमशुम हो,
अँधेरे में ढ़ुँढ़ती परछाईया,
क्यों तुम हो?
एकाकी नभ का हर एक सितारा,
फासलों के गम को झेल लो,
फूलों पे मँडराते भ्रमरों,
कोमल तन से तुम खेल लो।
जी लो जीवन एक पल में सारा,
आँख ना तेरा कभी नम हो।
ऐ रात की तन्हाईयों,
क्यों गुमशुम हो,
अँधेरे में ढ़ुँढ़ती परछाईया,
क्यों तुम हो?
मस्ती की धुन पर थिरक बादल,
बरस कर आसमा तु रो ले,
जल जल कर दीपक का स्व तन,
खुद का अस्तित्व ही खो ले।
हँसता हुआ छोड़े तु जमाना,
मर के भी ना तुझे गम हो।
ऐ रात की तन्हाईयों,
क्यों गुमशुम हो,
अँधेरे में ढ़ुँढ़ती परछाईया,
क्यों तुम हो?
ढ़ाई अक्षर का प्यार तेरा,
निर्मल हो, कोमल हो अक्षय,
जिंदगी गवाँ के भी तु,
कुछ तो कर ले आज संचय।
सिर्फ दो बूँद आँसू बस बहाकर,
प्यार तेरा ना कभी कम हो।
ऐ रात की तन्हाईयों,
क्यों गुमशुम हो,
अँधेरे में ढ़ुँढ़ती परछाईया,
क्यों तुम हो?
13 comments:
कवित के भाव अच्छे हैं। थोड़े कसाव और टंकण की अशुद्धियों पर ध्यान दें।
मनोज सर,धन्यवाद.......आप यूँही हरदम मेरा मार्गदर्शन करे।
अच्छे भावों से रची रचना.
कविता सुन्दर है..और जिस तरह से लिखी गई है...स्थाई और अंतरा का स्वरुप..इसे गाया जा सकता है...
भावपूर्ण अभिव्यक्ति..!
सुन्दर अभिव्यक्ति
शिवम भाई, बहुत सुंदर कविता रची है बधाई।
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दिल्ली के दिलवाले ब्लॉगर।
satyam bahut sundar kavita rachi hai .mere blog par aane v comment karne ke liye hardik dhanywad .best of luck .
Kya baat hai,bhut hi sundar kavita...all d best.
Kya khub likha hai aapne..kavita bhut achi hai,sabd chunaw kya baat hai.
aakarshak chiter ke sath baehtrin rachna
Very nice poetry....welldone.
Bhut hi sundar aur behatrin rachna..badhai.
अच्छा विषय। उत्तम भाव।
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