जिंसमे देखता था तुमको मैं
टुकड़ो-टुकड़ो में मिलती थी खुशी
दिन में कई बार।।
उन दिनो यूं ही हम तुम
खुश हुआ करते थे
न तुमने मुझे देखा था और
न ही मैने तुमको
बना ली थी एक तस्विर
तुम्हारी उन बातो से
सजा लिए थे सपनें रातों में
तुम्हारी उन बातो से
महसुस करता था तुमको हर पल
कल्पंनाये न छोड़ती थी साथ
जिसपर बैठ कर तय करता था सफर अपना।।
अच्छ लगता यूँ ही सब कुछ
सोचकर बाते तेरी मुस्कुराहट
उतर आती थी होठो पर
कितना हसीन था वो पल
वो साथ
जब बातें ही हमारी आवाज
हमारें जज्बात बयां करती थी।।
मै प्यार की गहराई तुम्हे समझाता
और प्यार की ऊंचाई
तुम चुपचाप ही सुनती रहती थी सब कुछ
यूं ही तब ये सिलसिला चलता रहता था
देर तक और फिर पूछता था
तुमसे न जाने कितने सवाल
तुम मुस्कुराकर ही टाल देती थी जवाब।।
मैं गुस्साता तो तुम समझाती
मैं रुठता तो तुम मनाती
पल आज फिर से याद आ रहा है
सोचकर बातें मैं
आज अकेले ही मुस्कुराता हूँ
तुमको याद करके।।
6 comments:
यहां स्लेष का अनुप्रयोग बेहतरीन
मै प्यार की गहराई तुम्हे समझाता
और प्यार की ऊंचाई
तुम चुपचाप ही सुनती रहती थी सब कुछ
यूं ही तब ये सिलसिला चलता रहता था
देर तक और फिर पूछता था
तुमसे न जाने कितने सवाल
तुम मुस्कुराकर ही टाल देती थी जवाब।।
पूरी कविता वाह क्या बात है
सोचकर बाते तेरी मुस्कुराहट
उतर आती थी होठो पर
कितना हसीन था वो पल
वो साथ
जब बातें ही हमारी आवाज
हमारें जज्बात बयां करती थी।।
xxxxxx
बहुत खूब .....दिल को छु गयी पंक्तियाँ ....आपका आभार
तुम्हारी बातें ही आईना थी
जिंसमे देखता था तुमको मैं
टुकड़ो-टुकड़ो में मिलती थी खुशी
दिन में कई बार।।
तो अब क्या हुया? क्या अब नही मुस्कुराते?
बहुत अच्छी लगी रचना। टुकडों मे मुस्कुराना --- वाह बहुत खूब बेटा। सदा पल पल मुस्कुराते रहो। आशीर्वाद।
बहुत ख़ूबसूरत और लाजवाब रचना लिखा है आपने जो काबिले तारीफ़ है! बधाई!
बेहतरीन रचना
एक टिप्पणी भेजें