शुद्ध धरम बस एक है, धारण कर ले कोय .
इस जीवन में फल मिले, आगे सुखिया होय .
सत्य धरम है विपस्सना, कुदरत का कानून .
जिस जिस ने धारण किया, करुणा बने जुनून .
अणु अणु ने धारण किया, विधि का परम विधान .
जो मानस धारण करे, हो जाये भगवान .
अंतस में अनुभव किया, जब जब जगा विकार .
कण - कण तन दूषित हुआ, दुख पाये विस्तार .
हिंदू, मुस्लिम, सिक्ख हो, भले इसाई जैन .
जब जब जगें विकार मन, कहीं न पाये चैन .
दुनियादारी में फंसा, दुख में लोट पलोट .
शुद्ध धरम पाया नही, नित नित लगती चोट .
मैं मैं की आशक्ति है, तृष्णा का आलाप .
धर्म नही धारण किया, करता रोज विलाप .
माया पीछे भागता, माया का अभिमान .
माया को सुख मानता, धन का करे न दान .
गंगा बहती धरम की, ले ले डुबकी कोय .
सच्चा धरम विपस्सना, जीवन सुखिया होय .
तप करते जोगी फिरें, जंगल, पर्वत घाट .
काया अंदर ढ़ूंढ़ ले, तीन हाथ का हाट .
अपनी मूरत मन गढ़ी, सौ सौ कर श्रृंगार .
जब जब मूरत टूटती, आँसू रोये हजार .
पत्नी, माता, सुत, पिता, नहीं किसी से प्यार .
अपने जीवन में सभी, स्वार्थ पूर्ति सहकार .
4 comments:
kulavant jee
pranam !
sunder dihe hai ,
badhai!
कुलवंत जी के दोहे सचमुच शानदार हैं।
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..आप कितने बड़े सनकी ब्लॉगर हैं?
बहुत बढ़िया और लाजवाब दोहा है! सब एक से बढ़कर एक है!
Bahut Sundar Dohey, Badhaye
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