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गुरुवार, 30 सितंबर 2010

(कविता)-- खुशियों का इंतज़ार -- कुमारेन्द्र सिंह सेंगर

(कविता)-- खुशियों का इंतज़ार -- कुमारेन्द्र सिंह सेंगर
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सुबह-सुबह चिड़िया ने

चहक कर उठाया हमें,
रोज की तरह
आकर खिड़की पर
मधुर गीत सुनाया हमें।
सूरज में भी कुछ
नई सी रोशनी दिखी,
हवाओं में भी
एक अजब सी
सोंधी खुशबू मिली।
फूलों ने झूम-झूम कर
एकदूजे को गले लगाया,
गुनगुनाते हुए
पंक्षियों ने नया राग सुनाया।
हर कोना लगा
नया-नया सा,
हर मंजर दिखा
कुछ सजा-सजा सा।
इसके बाद भी
एक वीरानी सी दिखी,
अपने आपमें कुछ
तन्हाई सी लगी।
अचानक
चौंक कर उठा तो
सपने में
खुद को खड़ा पाया,
खुशनुमा हर मंजर को
अपने से जुदा पाया।
आंख मल कर
दोबारा कोशिश
उसी मंजर को पाने की,
ख्वाब में ही सही
फिर वही खुशियां
देख पाने की।

3 comments:

Dudhwa Live ने कहा…

विगत स्मृतियों का भावपूर्ण प्रस्तुतीकरण जिस संजीदगी से किया है आप ने सेंगर साहब वह मन को आनन्द व स्तब्धता दोनों भावों के मिश्रित भाव उत्पन्न कर गया!

Krishna Baraskar ने कहा…

waaah waah bhai sahab bahut hi achha

Unknown ने कहा…

सुबह-सुबह चिड़िया ने
चहक कर उठाया हमें,
achchha laga sir
nawaratri ki hardik shubhkamana !
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