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रविवार, 29 अगस्त 2010

पुरुष वेश्याएं , आधुनिकता की नयी उपज--------मिथिलेश दुबे

हाँ आपको सुनने में अटपटा जरूर लगा होगा . हाँ होगा भी कैसे नहीं है भी अटपटा .अगर इसे आधुनिकता की नयी खोज कहा जाये तो तनिक भी झूठ न होगा . पहले वेश्यावृत्ति का शब्द मात्र महिलाओं के लिए प्रयोग किया जाता था , लेकिन अब जब देश विकाशसील है तो बदलाव आना तो लाजिमी हैं ना. अगर देखा जाये तो वेश्या मतलब वो जिन्हें पुरुष अपने वासना पूर्ति के लिए प्रयोग करते थें , इन्हे एक खिलौना के माफिक प्रयोग किया जाता था, वाशना शांत होने के बाद इन्हे पैसे देकर यथा स्थिति पर छोड़ दिया जाता था . पुरुष वर्ग महिलाओं प्रति आकर्षित होते थे और ये अपनी वासना पूर्ति के लिए जिन्हें वेश्या कहते हैं, इनके माध्यम से अपनी शारीरिक भूख शांत करते थे . लेकिन अब समय बदल गया है पश्चिम की आधी ऐसी आई वहां की प्रगतिवादी महिलाओं ने कहा कि कि ये क्या बात हुयी , पुरुष जब चाहें अपनी वासना मिटा लें परन्तु महिलाएं कहाँ जाये ???? तत्पश्चात उदय हुआ है जिगोलो या पुरुष वेश्याओं का .
आज ये हमारें यहाँ खासकर बड़े शहरों में इनकी संख्या बहुत तेजी से बढ़ रही . साथ ही इनकी मांग भी दिन व दिन बढती ही जा रही है . जिगोलो का उपयोग महिलाएं अपनी वासना पूर्ति के लिए करती हैं. जब महिलाएं अपने देह का व्यापार करके पैसे कमा सकती हैं तो पुरुष क्यूँ नहीं, परिणाम वेश्याओं के समाज में नयी किस्म . आखिर हो भी क्यूँ न , इसमे पुरुष वर्ग फायदे में भी तो रहता है , एक तीर से दो निशाना जो हो जाता है, इन्हे आनंद तो मिलता ही है साथ ही पैसे भी वह भी अच्छे खाशे .
पुरुष वेश्याओं का प्रयोग ज्यादातर अकेली रहने वाली ,उम्रदराज महिलाएं या अपने पति से संतुष्ट न रहने वाली महिलाएं करती हैं . इनका चलन मेट्रो शहरों में ज्यादा है कारण इनका वहां आसानी से उपलब्धता .
ये नयी किस्म की गंदगी पश्चिम सभ्यता की देन है, यह वहां के नग्नता का परिचायक है . बङे शहरों में इनकी मांग ज्यदा इसलिए क्योंकि यहाँ की महिलाएं ज्यादा आधुनिक हैं .उन्मुक्त हो चुकी महिलाओं को अपनी वासना की पूर्ति के लिए जिगोलो के रुप में साधन मिला. भारत पश्चिम सभ्यता का हमेशा से ही नक़ल करता आया है, तो यहाँ पिछे रहने के कोई कारण ही नहीं है . हमारे देश के युवा उनके ही पदचिन्हों पर चल रहे हैं और इसका परिणाम किसी को बताने की जरूरत नहीं हैं , इतनी स्त्रियों से संबंध बनाने के बाद अक्सर उनमें से ज्यादातर एड्स या अन्य घातक बीमारियों के शिकार हो जाते हैं फिर चाहे पैसे कमाने के लिए अपनी मर्यादा ही क्यों न दाव पर लगा देनी पड़े .आज युवा अच्छे पैसे के लिए वह सबकुछ कर रहा है जिसकी कभी कल्पना भी नहीं की जा सकती थी. शायद आधुनिकता की अन्धता यही है.समलैंगिक पुरुषों और देह व्यापार से जुड़े पुरुषों के लिए काम कर रहे हमसफ़र ट्रस्ट के अध्यक्ष अशोक राव कवि का मानना है कि "ये जिगोलो भी बाज़ार की वस्तु है जो समाज से आ रही माँग को पूरा कर रहे हैं. ये समाज के उच्चवर्ग की वस्तु बन गई है. समाज में माँग थी, जिसकी भरपाई करने के लिए सप्लाई आ गई है. इसने एक नया बाज़ार तैयार किया जो दोनों ही पक्षों की ज़रूरत को पूरा कर रहा है.
इन सबके आगे इस परीदृश्य को देखा जाये तो ये विकास की ये आधुनिकताहमारे सभ्य समाज को न सिर्फखोखला बल्कि विक्षिप्त भी कर रहा है . युवा पीढ़ी को कहा जाता है कि वह भारत का भविष्य सवारेगा वह अब ऐसे दलदल में फंशा जा रहा है जहाँ से इसकी कल्पना करना इनके साथ बेईमानी होगी . रोजगार की कमी को भी इसका कर्णधार कहा जा सकता है, लेकिन ये क्या जिस पीढ़ी को हमसे इतनी उम्मीद है उसके हौशले इतनी जल्द पस्त हो जाएंगे ऐसा कभी सोचा न था. भारत में समलैंगिकता और वेश्यावृत्ति तथा लिव इन रिलेशनशिप के प्रति दृष्टिकोण बदलने की बात की जा रही है। पहले ही इन मुद्दों पर बहुत विवाद हो चुका है। ऐसे में इस तरह के दूषित मानसिकता को रोकना अतिआवश्यक है । अगर देखा जाए तो मीडिया इनमे महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर रहा है और पाश्चात की चमचागिरी मे लगा है,ऐसे में फैसला आपके हाथ में है।

6 comments:

संतोष कुमार "प्यासा" ने कहा…

Sthiti Gambhir hai.
lekin is sthiti k lie Sirf PAschaty Sabhyta ko Kosna Bemani hogi.
isme hamari bhi galtiyan hai.
Yadi aj ki peedi aisi gandagi me apne ap ko dhal rahi hai to uske jimedar ham bhi avshya hai.
Aj yuvao me Me achche sanskaro ki kami hai. falt: aj k yuva aisi gandagi me fans rahe hai. vaise Vaishyavraitti stri kare ya Purush dono hi galat hai.

vandana gupta ने कहा…

आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
प्रस्तुति के प्रति मेरे भावों का समन्वय
कल (30/8/2010) के चर्चा मंच पर देखियेगा
और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा।
http://charchamanch.blogspot.com

चंद्रमौलेश्वर प्रसाद ने कहा…

इस विषय को लेकर अब तो उपन्यास भी लिखे जाने लगे हैं॥

DR.ASHOK KUMAR ने कहा…

इस संवेदनशील विषय पर आपकी प्रस्तुति लाजबाव हैँ। बधाई! -: VISIT MY BLOG :- गमोँ की झलक से जो डर जाते हैँ।.............. गजल को पढ़कर अपने अमूल्य विचार व्यक्त करने के लिए आप सादर आमंत्रित हैँ। आप इस लिँक पर क्लिक कर सकते हैँ।

Divya Narmada ने कहा…

इसमें न तो कुछ नया है, न पाश्चात्य सभ्यता की दें. आदि काल से यह होता रहा है और होता रहेगा. पहले लुके-छिपे होता था अब युवा सच को खुले-आम स्वीकारने लगे हैं. अर्थशास्त्र का आवश्यक और पूर्ति का नियम ही इस का नियंता है.

दीपक बाबा ने कहा…

समय के अनुरूप समाज बदलता है.... ये तो जानते है ........ क्या अब विदेशी संस्कृति से हमारी संस्कृति भी बदलेगी?


साधुवाद