न कोई मजहब है मेरा
न कोई भगवान है
मैं तो बस इन्सान हूँ
इंसानियत मेरी पहचान है..
न कभी मंदिर गया मैं
न कभी गुरूद्वारे में
मैं तो बस देखता हूँ
सबमें ही भगवान है .
न किसी से इर्ष्या हो
न किसी से बैर हो
मैं तो बस ये चाहता हूँ
सबमें ख़ुशी और प्रेम हो
पढता हूँ मैं खबर
शहर कत्लेआम की
हो दुखी नम आँखों से
क्या खुदा , क्या राम है..
आज मैं मैं कर रहा
कल खाक में मिल जाऊंगा
सांसे टूट जाएगी एक दिन
क्या साथ मेरे जायेगा ...
आओ हम ये दूरी मिटा दें
न कोई हो दुर्भावना
राम पूजे मुसलमान
हिन्दू खुदा के साथ हो
मैं किसी को न कहूँगा
तुम कभी न छोडो धरम
राम , रहमत के नाम पर
तुम मिटा दो फासला ..
बुधवार, 11 अगस्त 2010
मैं तो बस ....(कविता)
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1 comments:
ेकता -भाईचारे का सन्देश देती सुन्दर रचना के लिये बधाई।
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