दोस्त बन कर मुकर गया कोई
अपने दिल ही से डर गया कोई
आँख में अब तलक है परछाईं
दिल में ऐसे उतर गया कोई
सबकी ख़्वाहिश को रख के ज़िंदा फिर
ख़ामुशी से लो मर गया कोई
जो भी लौटा तबाह ही लौटा
फिर से लेकिन उधर गया कोई
"दोस्त" कैसे बदल गया देखो
मोजज़ा ये भी कर गया कोई
रविवार, 1 अगस्त 2010
दिल में ऐसे उतर गया कोई.............(ग़ज़ल)................मनोशी.
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7 comments:
ग़ज़ल की भाषिक संवेदना पाठक को आत्मीय दुनिया की सैर कराने में सक्षम है। ग़ज़ल के शे’र मन को छू लेते हैं और रचयैता के सामर्थ्य और कलात्मक शक्ति से परिचय कराते हैं। नितांत व्यक्तिगत अनुभव कैसे समष्टिगत हो जाता है इसे हम उनकी इस ग़ज़ल में देख सकते हैं।
ग़ज़ल की भाषिक संवेदना पाठक को आत्मीय दुनिया की सैर कराने में सक्षम है। ग़ज़ल के शे’र मन को छू लेते हैं और रचयैता के सामर्थ्य और कलात्मक शक्ति से परिचय कराते हैं। नितांत व्यक्तिगत अनुभव कैसे समष्टिगत हो जाता है इसे हम उनकी इस ग़ज़ल में देख सकते हैं।
02.08.10 की चिट्ठा चर्चा में शामिल करने के लिए इसका लिंक लिया है।
http://chitthacharcha.blogspot.com/
अति प्रभावकारी अभिव्यक्ति !
सद्भावी -डॉ० डंडा लखनवी
bahut hee acchi rachna lagi, Bhadhai
सबकी ख़्वाहिश को रख के ज़िंदा फिर
ख़ामुशी से लो मर गया कोई
waah bahut gahri gazal
Manoshi ji ko padhna hamesha sukhad raha hai
ap ki gjal man ki ghrae ko chhune wali hai. jo dil ki sari bhavnaye jag gyi ho
rasto pr vhi jate hai jinko jalna aata hai . manjile wahi pate hai jinhe clna aata hai
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