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रविवार, 1 अगस्त 2010

दिल में ऐसे उतर गया कोई.............(ग़ज़ल)................मनोशी.

दोस्त बन कर मुकर गया कोई  
अपने दिल ही से डर गया कोई

आँख में अब तलक है परछाईं
दिल में ऐसे उतर गया कोई

सबकी ख़्वाहिश को रख के ज़िंदा फिर
ख़ामुशी से लो मर गया कोई

जो भी लौटा तबाह ही लौटा
फिर से लेकिन उधर गया कोई

"दोस्त" कैसे बदल गया देखो
मोजज़ा ये भी कर गया कोई

7 comments:

मनोज कुमार ने कहा…

ग़ज़ल की भाषिक संवेदना पाठक को आत्‍मीय दुनिया की सैर कराने में सक्षम है। ग़ज़ल के शे’र मन को छू लेते हैं और रचयैता के सामर्थ्‍य और कलात्‍मक शक्ति से परिचय कराते हैं। नितांत व्‍यक्तिगत अनुभव कैसे समष्टिगत हो जाता है इसे हम उनकी इस ग़ज़ल में देख सकते हैं।

मनोज कुमार ने कहा…

ग़ज़ल की भाषिक संवेदना पाठक को आत्‍मीय दुनिया की सैर कराने में सक्षम है। ग़ज़ल के शे’र मन को छू लेते हैं और रचयैता के सामर्थ्‍य और कलात्‍मक शक्ति से परिचय कराते हैं। नितांत व्‍यक्तिगत अनुभव कैसे समष्टिगत हो जाता है इसे हम उनकी इस ग़ज़ल में देख सकते हैं।

मनोज कुमार ने कहा…

02.08.10 की चिट्ठा चर्चा में शामिल करने के लिए इसका लिंक लिया है।
http://chitthacharcha.blogspot.com/

डॉ० डंडा लखनवी ने कहा…

अति प्रभावकारी अभिव्यक्ति !
सद्भावी -डॉ० डंडा लखनवी

Mithilesh dubey ने कहा…

bahut hee acchi rachna lagi, Bhadhai

श्रद्धा जैन ने कहा…

सबकी ख़्वाहिश को रख के ज़िंदा फिर
ख़ामुशी से लो मर गया कोई

waah bahut gahri gazal
Manoshi ji ko padhna hamesha sukhad raha hai

ananad banarasi ने कहा…

ap ki gjal man ki ghrae ko chhune wali hai. jo dil ki sari bhavnaye jag gyi ho
rasto pr vhi jate hai jinko jalna aata hai . manjile wahi pate hai jinhe clna aata hai