सितम जब ज़माने ने जी भर के ढाये
भरी सांस गहरी बहुत खिलखिलाये
कसीदे पढ़े जब तलक खुश रहे वो
खरी बात की तो बहुत तिलमिलाये
न समझे किसी को मुकाबिल जो अपने
वही देख शीशा बड़े सकपकाये
भलाई किये जा इबादत समझ कर
भले पीठ कोई नहीं थपथपाये
खिली चाँदनी या बरसती घटा में
तुझे सोच कर ये बदन थरथराये
बनेगा सफल देश का वो ही नेता
सुनें गालियाँ पर सदा मुसकुराये
बहाने बहाने बहाने बहाने
न आना था फिर भी हजारों बनाये
गया साल 'नीरज' तो था हादसों का
न जाने नया साल क्या गुल खिलाये
3 comments:
भलाई किये जा इबादत समझ कर
भले पीठ कोई नहीं थपथपाये
क्या ख़ूब कहा है आदरणीय नीरज जी ने !
हिन्दी साहित्य मंच को एक बेहतरीन ग़ज़ल पढ़ने का अवसर प्रदान करने के लिए आभाए !
- राजेन्द्र स्वर्णकार
शस्वरं
bahut hi shaandar gazal .....adhkar mja aa gya
sadabayani ke saath dil ko chhoote hue sher.....badhai
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