बहुत तन्हाईयाँ मुझ को भी तो अच्छी नही लगती
परन्तु क्या करूं मुझ को यही जीना सिखाती हैं
बहुत तन्हाइयों के दिन भुलाये भूलते कब हैं
वह तो खास दिन थे जिन्हों की याद आती है
सफर में जब भी चलता हूँ हई तो साथ जाती हैं
उन्होंने भूल कर के भी कभी आ कर नही पूछा
यह तन्हाईयाँ ही हाल मेरा पूछ जाती हैं
बहुत अच्छी हैं ये तन्हाईयाँ कैसे बुरा कह दूं
यह तन्हाईयाँ मुझ से कभी भी दूर न जाएँ
इन्ही तन्हाइयों ने मुझ को बेपर्दा किया यूं है
मोहब्बत मांग ली थी कुछ सुकून के वास्ते मैंने
बहुत कीमत है इन तन्हाईयों की खर्च न करना
0 comments:
एक टिप्पणी भेजें