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रविवार, 18 जुलाई 2010

बरसात.............(कविता)......................सुमन 'मीत'


घना फैला कोहरा

कज़रारी सी रात

भीगे हुए बादल लेकर

फिर आई है ‘बरसात’

 

अनछुई सी कली है मह्की

बारिश की बूंद उसपे है चहकी

भंवरा है करता उसपे गुंजन

ये जहाँ जैसे बन गया है मधुवन

 

रस की फुहार से तृप्त हुआ मन

उमंग से जैसे भर गया हो जीवन

’बरसात’ है ये इस कदर सुहानी

जिंदगी जिससे हो गई है रूमानी !!

3 comments:

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

सुन्दर कविता।

Mithilesh dubey ने कहा…

badhiya lagi kavita

बेनामी ने कहा…

किवता एकदम सुंदर है। इस तरह की किवताएं लिखते जाऍ । ईश्वर आपकी भला करें बच्चू!!!