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गुरुवार, 1 जुलाई 2010

.कविता .......................लोकेश उपाध्याय

मेरे दर्द का ,किसी को एहसास नहीं ,
इस ज़माने में , कोई मेरे साथ नहीं ,
क्या हुआ क्यों भीड़ में तन्हा हूँ ,
क्यों खुशियों को मै रास नहीं ,

मेरे दर्द का ,किसी को एहसास नहीं ,
इस ज़माने में , कोई मेरे साथ नहीं ,
क्या हुआ क्यों भीड़ में तन्हा हूँ ,
क्यों खुशियों को मै रास नहीं ,
इस ज़माने में , कोई मेरे साथ नहीं

3 comments:

संतोष कुमार "प्यासा" ने कहा…

BAHUT SUNDAR EACHANA.

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

जब कभी तुम्हारी कर्मों से, सब नयन आर्द्र हो बरसेंगे,
तब नहीं मिलेगा समय कहीं, सब संग पाने को तरसेंगे ।

Unknown ने कहा…

bahut hi acchi rachna .....badhai