तुझे दिल याद करता है तो नग़्मे गुनगुनाता हूँ
जुदाई के पलों की मुश्किलों को यूं घटाता हूं
जिसे सब ढूंढ़ते फिरते हैं मंदिर और मस्जिद में
हवाओं में उसे हरदम मैं अपने साथ पाता हूं
फसादों से न सुलझे हैं, न सुलझेगें कभी मसले
हटा तू राह के कांटे, मैं लाकर गुल बिछाता हूं
नहीं तहजीब ये सीखी कि कह दूं झूठ को भी सच
गलत जो बात लगती है गलत ही मैं बताता हूं
मुझे मालूम है मैं फूल हूं झर जाऊंगा इक दिन
मगर ये हौसला मेरा है हरदम मुस्कुराता हूं
नहीं जब छांव मिलती है कहीं भी राह में मुझको
सफर में अहमियत मैं तब शजर की जान जाता हूं
घटायें, धूप, बारिश, फूल, तितली, चांदनी 'नीरज'
तुम्हारा अक्स इनमें ही मैं अक्सर देख पाता हूँ
शुक्रवार, 14 मई 2010
मैं लाकर गुल बिछाता हूं.............(गजल)............नीरज गोस्वामी
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8 comments:
नहीं तहजीब ये सीखी कि कह दूं झूठ को भी सच
गलत जो बात लगती है गलत ही मैं बताता हूं
बहुत ही बेहतरीन ग़ज़ल ....
neeraj ji bahut hi shandaar gazal ..mja aa gya ..
फसादों से न सुलझे हैं, न सुलझेगें कभी मसले
हटा तू राह के कांटे, मैं लाकर गुल बिछाता हूं
bahut hi unda gazal
जिसे सब ढूंढ़ते फिरते हैं मंदिर और मस्जिद में
हवाओं में उसे हरदम मैं अपने साथ पाता हूं
wah wah bahut khub ..sukriya
bahut hee umda rachna lagi
बहुत खूबसूरत ग़ज़ल....
अरे वाह,,
फिर से पढवाने के लिए शुक्रिया
जिसे सब ढूंढ़ते फिरते हैं मंदिर और मस्जिद में
हवाओं में उसे हरदम मैं अपने साथ पाता हूं
मुझे मालूम है मैं फूल हूं झर जाऊंगा इक दिन
मगर ये हौसला मेरा है हरदम मुस्कुराता हूं
ये शेर मुझे खास पसंद आये
नीरज जी एक बार फिर से शुक्रिया
वाह!
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