रो कर मैंने हँसना सीखा, गिरकर उठना सीख लिया।
आते-जाते हर मुश्किल से, डटकर लड़ना सीख लिया।।
महल बनाने वाले बेघर, सभी खेतिहर भूखे हैं।
सपनों का संसार लिए फिर, जी कर मरना सीख लिया।।
दहशतगर्दी का दामन क्यों, थाम लिया इन्सानों ने।
धन को ही परमेश्वर माना, अवसर चुनना सीख लिया।।
रिश्ते भी बाज़ार से बनते, मोल नहीं अपनापन का।
हर उसूल अब है बेमानी, हँटकर सटना सीख लिया।।
फुर्सत नहीं किसी को देखें, सुमन असल या कागज का।
जब से भेद समझ में आया, जमकर लिखना सीख लिया।।
शनिवार, 22 मई 2010
सीख................(गजल).................श्यामल सुमन
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9 comments:
waah bahut khoob....
रिश्ते भी बाज़ार से बनते, मोल नहीं अपनापन का।
हर उसूल अब है बेमानी, हँटकर सटना सीख लिया।।
sabse achcha laga
रो कर मैंने हँसना सीखा, गिरकर उठना सीख लिया।
आते-जाते हर मुश्किल से, डटकर लड़ना सीख लिया।।
bahut khub ..shandaar gazal
gazal padhkar accha laga ..jitni bhi tariph ki jaye kam hogi ..
फुर्सत नहीं किसी को देखें, सुमन असल या कागज का।
जब से भेद समझ में आया, जमकर लिखना सीख लिया।।
bahut hi acchi gazal ...dhanyavaad
aaje ke daur ko dikhaati ek achhi ghazal suman ji ..
रो कर मैंने हँसना सीखा, गिरकर उठना सीख लिया।
आते-जाते हर मुश्किल से, डटकर लड़ना सीख लिया।।
सही नजरिया ।
अच्छी ग़ज़ल लिखी है सुमन जी ।
लाजवाब! बेहतरीन! उम्मीदों की बात करती, हालात की बात करती शानदार ग़ज़ल !
फुर्सत नहीं किसी को देखें, सुमन असल या कागज का।
जब से भेद समझ में आया, जमकर लिखना सीख लिया।।
......mushkil haalaton se hi to betar sikhta hai aadmi..
umda prastuti ke liye dhanyavaad
आप सबके प्रति श्यामल सुमन का विनम्र आभार प्रेषित है। स्नेह बनाये रखें।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
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