कुछ दिन पहले मैंने न लिखने का निर्णय लिया था !
जिसे निभा नहीं पाया और फिर से उठा ली कलम !
विचारो का सूरज
विपत्तिओं की बदली में खो गया
छुप गए शब्द
सुनकर आशंकाओं की गडगडाहट
भावनाओं की तीव्र वृष्टि
बहा ले गई सारे सन्दर्भ
डरा सहमा है मन
सोंचता है
अब बचा भी क्या है
क्या लिखूं ?
कैसे लिखूं ?
किसके लिए लिखूं ?
शायद खुद से हार चुका है मन
एक अर्थहीन निर्णय लिया
मन ने
निर्णय, न लिखने का !
पर पता नहीं क्यूँ
कुछ दिन भी कायम न रह सका निर्णय पर
लोगों की बातें बिच्छु की भांति डंक मार रही हैं
कुछ अनजाने विचार कौंधते है मन में
कुछ है जो टीसता है
लिखने से ज्यादा
न लिखना
कष्टदायी है
दुःखदायी है
यही सोंच कर फिर से उठा ली है कलम !
शुक्रवार, 21 मई 2010
विचारो का सूरज {कविता} सन्तोष कुमार "प्यासा"
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2 comments:
फिर कलम उठा ली बहुत अच्छा किया. वर्ना आपके चाहने वाले आपके सुंदर विचारों से वंचित रह जाते . वैसे भी यह वरदान सभी को तो मिलता नहीं !
कविता बहुत सुंदर बन पड़ी है !
nice
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