देखा करती हूँ मै ज़िन्दगी की खूबसूरती
रिस्तो की अहमियत, दोस्तों की ज़रूरत
मुहब्बत की नजाकत और पेड़ो की डालो से झडते हुए पत्ते
मुस्कुराते हुए बच्चे और घूमते युवा
उड़ते हुए पंक्षी, और फिर देखा करती हूँ
चौराहे पर खड़े वृद्ध की आँखें,
देखा करती हूँ मै किताबो की तह्जीने,
घरों में संस्कार, परिवारों में मर्यादा, लब्जों में प्यार
और फिर "कल की तलाश में भटकता हुआ आज "
रविवार, 9 मई 2010
कल की तलाश में भटकता आज------ (कविता)------- प्रीती "पागल"
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