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गुरुवार, 29 अप्रैल 2010

मै कवी हूँ

मै कवी हूँ मुझे भावनाओं के संग बहना पड़ता है



जो चाहते है सब सुनना, समाज में हो रहा है जो वही मुझे

कहना पड़ता है !

मै कवी हूँ मुझे भावनाओं के संग बहना पड़ता है

गरीब तुम हो तो गरीब मै नही हूँ, दुखी तुम हो तो दुखी मै भी हूँ

प्रकृति का यह नियम मुझे भी सहना पड़ता है !


मै कवी हूँ मुझे भावनाओं के संग बहना पड़ता है

पता है मुझे की समाज में फैली है बुराई, हर जगह खून खराबा


और कुछ नहीं तो घरेलू लड़ाई

पर क्या करूँ मजबूरन यहाँ रहना पड़ता है !


मै कवी हूँ मुझे भावनाओं के संग बहना पड़ता है !


आदमी के लहू का "प्यासा" है आदमी, इस कदर जुल्मो सितम

से ऊब गई है जमीं

बस यही सोंच कर बढ जाती है हिम्मत, पाप का महल चाहे

लाख बना हो मजबूत

एक न एक दिन उसे ढहना पड़ता है !

मै कवी हूँ मुझे भावनाओं के संग बहना पड़ता है !

1 comments:

अरुणेश मिश्र ने कहा…

विवशता का आनन्द कौन लिख पाता है , बधाई ।