धरी
धरी लुट गयी
सपनों की टोकरी,
मिली नहीं नौकरी।
क्या
हम कहें
कुछ कहा नहीं जाए,
जीवन से मौत अच्छी
सहा नहीं जाए।
झूठे
अरमान हुए सपनें बेइमान हुए,
अपने अनजान हुए
रहा नहीं जाए।
कर
गई बाय बाय
मुम्बई की छोकरी !
मिली नहीं नौकरी।
धरी धरी लुट गयी ...
कितने जतन किए
पूरी की पढ़ाई,
फिर भी जमाने में
बेकारी हाथ आई।
दर
दर की ठोकर खाते,
पानी पी भूख मिटाते,
पर हम लड़ते ही जाते
जीवन की लड़ाई।
होकर
मजबूर यारों
करते हैं जोकरी !
मिली नहीं नौकरी।
धरी
धरी लुट गयी ..
मंगलवार, 20 अप्रैल 2010
धरी लुट गयी (गीत) .............. कुमार विश्वबंधु
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5 comments:
होकर
मजबूर यारों
करते हैं जोकरी !
मिली नहीं नौकरी।
आज कल नौकरी आसानी से नही मिलती है.....सुंदर रचना बधाई जी
कुमार जी ,, कम शब्दों में सब कुछ लिख दिया ..बधाई
झूठे
अरमान हुए, सपनें बेइमान हुए,
अपने अनजान हुए
रहा नहीं जाए।
कर
गई बाय-बाय
मुम्बई की छोकरी !
मिली नहीं नौकरी।
kya baat hai bahut khub ...majedaar geet
बहुत खूब ..सुन्दर गीत ..बधाई
धरी धरी लुट गयी सपनो की टोकरी ...
यथार्थ का बोध कराती अच्छी रचना ...
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