जी हाँ ... एक कटु सत्य है.. जाने वालो की बस याद आती है .. वो कभी नही आते .. लेकिन हम फिर भी इस बात को समझ ही नही पा रहे है .. हाल ही मे दिशा की सास बहुत बीमार चल रही थी पर वो उनसे मिलने एक बार भी नही गई ... ना ही फोन पर बात की ना हाल पूछा .. अचानक वो एक दिन मर गई .. फिर तो उसकी हालत देखने वाली थी .. इतना रोई ...इतना रोई कि बस ..अब ये सारा ड्रामा ही लग रहा था ...भले ही उनके जाने के बाद उसके दिल मे प्यार जाग गया हो ..पर अब तो कुछ नही हो सकता ..सोचने वाली बात यह है कि जब आदमी जिन्दा होता है तब हम उसकी कद्र क्यो नही करते ...उसे वो सम्मान क्यो नही देते जिसके वो हकदार है हो सकता है हमारे द्वारा अगर वो इज्जत मिली होती तो शायद वो इतनी जल्दी मरे ही ना होते .. आज हमारे ही बीच मे होते ..यही बात मीडिया पर भी लागू होती है ...जब वो आदमी जिन्दा होगा तब उसकी खैर खबर लेने कोई नही आएगा पर जहाँ वो मरा नही .. पूरा मीडिया वहाँ इक्कठा होकर दिन रात ब्रेकिंग न्यूज बनाएगा ..भले आदमियो ....अगर पहले ही उन पर ध्यान दे देते ...उनका और उनके कामो का प्रचार ही कर देते तो शायद उनके मरने की नौबत ही ना आई होती ..वो शायद मरे ही इस वजह से है कि इतना करने के बाद भी उनकी वो पहचान नही बनी जिसके वो हकदार थे ..इसलिए हे मृत्यु लोक के वासियो ...जीवन की डोर बडी कमजोर ना जाने कब छूट जाए... इस जीवन मे रहते हुए सभी का आदर करो ..सम्मान दो .. खुशी दो .. और समय दो .. ताकि बाद मे यह ना कहना पडे कि काश मै उनकी फलां इच्छा पूरी कर पाता .. काश ये .. काश वो ....जरा सोचिए ....
बुधवार, 14 अप्रैल 2010
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8 comments:
मोनिका जी , आज के समय ओ देखते हुए तो ऐसा ही लग रहा है ....इन्सान खुद में ही मस्त है और मीडिया को क्या कहा जाये ? वह तो किसी भी हद तक जा सकता है ....विचारनीय मुद्दा
lekh padh kar chinta jarur hui par ....hum khud ko hi bhul rahe hai ....kisi ki kami ka pata tab chalta hai jab hum usko kho chuke hote hai ....rahi baat media ki toh aaj ki media paise k liye kaam karti hai chahe aadmi ki jaan jaye ya phir kuch aur bhi ho jaye usko toh bas paise se matlab hai ....accha likha ..aapne
monika ji aapne kuch shabdo me such ko likha hai ...bhagambhag me hum riste nate sab bhul gaye hai ...badhai...
apne jo bhi likha wo to thik hai pr apne ye jrur dekha hoga ki log kuch din rote hai phir bhul kar apne kam ko karte hai. apka kekh tariph ke kabil hai apne jo shacha wo log aj aha sochtehai
आपका कहना बिल्कुल सही है .. सिर्फ व्यक्तिगत लाभ की चिंता है सबको !!
हाथ मलते बीते समय को कोसना ही इन्सानी फितरत है...हमेशा से यही रहा है और ऐसा ही रहेगा.जब तक जिन्दा रहो..कोई नहीं पूछता!
nice
आज कल तो जाने के बाद भी याद नही आते ... लेकिन फिर भी जिस तरह से आपने इस लेख मे अपने विचार दिये है वो वास्तव मे सराहनीय है ...
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