मन में चलती है आंधी या मन ही है आंधी
नव प्रकार के नव विचार
कल्पनाओं के इश्वर ने , रच दिया नव संसार
ह्रदय व्याकुल है , उठी वेदना
फिर उमड़ी मन की आंधी
कभी तीव्र कभी मंद गति से करती,
मन को बेकल मन की आंधी
मन में चलती है आंधी या मन ही है आंधी
हवा के रुख को मोड़ा किसने?
कुछ अच्छे कुछ मलिन विचारों को
लेकर उड़ चली मन की आंधी
मंगलवार, 27 अप्रैल 2010
मन आंधी
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5 comments:
बहुत अच्छी रचना पर पँक्तियों के मध्य इतना अंतराल क्यों..?
Amitraghat जी से सहमत!
कुंवर जी,
बहुत अच्छी प्रस्तुति।
spacing ki thodi gadbad hui..rachna bahut achchi hai...
कविता तो अच्छी है, स्पेस की समस्या दूर कर दी गई है।
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