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मंगलवार, 27 अप्रैल 2010

मन नौका

मन नौका विचरती है विचारों के सागर पर












आश निराश के मौजों में डगमगाती इधर उधर









कहीं गहरा तो कहीं उथला है सागर









सुख दुःख के दो पतवारों से पार करनी है तूफानी डगर









उम्मीदों के टापू मिलते









व्याकुलता तज , कुछ क्षण को जाते ठहर









अरमानो का पंक्षी उड़ जाता है









बेबस होकर पुन: वापस आए लौट कर



मन नौका विचरती है विचारों के सागर पर

2 comments:

कविता रावत ने कहा…

सुख दुःख के दो पतवारों से पार करनी है तूफानी डगर
मन नौका विचरती है विचारों के सागर पर
........मन की अंतर्वेदना की गहरी भावाभियक्ति ....

कृपया पंक्तियों के बीच का अंतर काम कर दें तो पढने में आसानी होगी ....

हार्दिक शुभकामनाएं

Shekhar Kumawat ने कहा…

BAHUT KHUB

BADHAI IS KE LIYE AAP KO


SHEKHAR KUMAWAT