हमारा प्रयास हिंदी विकास आइये हमारे साथ हिंदी साहित्य मंच पर ..

शनिवार, 17 अप्रैल 2010

तुम इतने समीप आओगे मैंन कभी नहीं सोचा था......- डा. बुद्धिनाथ मिश्र


मधेपुरा की ऐतिहासिक साहित्यिक परम्परा को सम्वर्द्धित करते हुए बी. एन मंडल विश्वविधालय, मधेपुरा के वर्तमान कुलपति डा. आर. पी. श्रीवास्तव के सद्प्रयास से विश्वविधालय के सभागार में काव्य संध्या का एक महत्वपूर्ण आयोजन किया गया। विश्वविधालय स्थापना के 17 वर्षों में यह पहला मौका था जब साहित्य की एक महत्वपूर्ण विधा (कविता) पर रचनाकारों का इस तरह भव्य समागम हुआ। विशिष्ठ अतिथि एवं गीतकाव्य के शिखर पुरुष डा. बुद्धिनाथ मिश्र (देहरादून) सहित अन्य कवियों को श्रोताओं ने जी भर सुना। कवियों में डा. रवीन्द्र कुमार ‘रवि’, डा. कविता वर्मा, डा.पूनम सिंह, रमेश ऋतंभर (मुजफ्फरपुर) डा. रेणु सिंह, डा. एहसान शाम, रेयाज बानो फातमी, (सहरसा) डा. विनय चौधरी, अरविन्द श्रीवास्तव (मधेपुरा) ने काव्य पाठ किया। डा. बुद्धिनाथ मिश्र ने एक मुक्तक से काव्य पाठ आरम्भ किया - राग लाया हूँ, रंग लाया हूँ, गीत गाती उमंग लाया हूँ। मन के मंदिर मे आपकी खातिर, प्यार का जलतरंग लाया हूँ।  

डा. मिश्र ने अपने कई गीतों का सस्वर पाठ किया, देखें कुछ की बानगी-

नदिया के पार जब दिया टिमटिमाए
अपनी कसम मुझे तुम्हारी याद आये.....

मोर के पाँव ही न देख तू
मोर के पंख भी तो देख 
शूल भी फूल हैं बस इक नजर
गौर से जिन्दगी तो देख.....

एक बार और जाल फेंक रे मछेरे 
जाने किस मछली में बंधन की चाह हो.......

तुम इतने समीप आओगे मैंन कभी नहीं सोचा था......

 काव्य संध्या की अध्यक्षता करते हुए डा. रिपुसूदन श्रीवास्तव ने कविता को मानव हृदय का स्पंदन कहा। उन्होंने अपनी कविता कुछ इस तरह सुनायी-

जंग, धुआं, गम के साये में जैसे-तैसे रात ढ.ली
एक कली चटकी गुलाब की, सुबह जो तेरी बात चली........।

 इस अवसर पर प्रकृति भी मेहरबान दिखी, बारिश की हल्की फुहार के साथ इस यादगार काव्य संध्या का समापन हुआ।

आभार ....जन्शब्द 

6 comments:

Unknown ने कहा…

मोर के पाँव ही न देख तू
मोर के पंख भी तो देख
शूल भी फूल हैं बस इक नजर
गौर से जिन्दगी तो देख...

bahut hi sundar line ....

जय हिन्दू जय भारत ने कहा…

bahut hi hunda rapat....behtrin rachnayenn padhne ka muka mila ...

हिन्दी साहित्य मंच ने कहा…

डाक्टर साब .....कार्यक्रम को आपने जीवंत कर दिया ....समीक्षा पढ़ कर सब कुछ सामने घूम गया .....धन्यवाद

हिन्दी साहित्य मंच ने कहा…

डाक्टर साब .....कार्यक्रम को आपने जीवंत कर दिया ....समीक्षा पढ़ कर सब कुछ सामने घूम गया .....धन्यवाद

दिलीप ने कहा…

ant ka sher bada jaandar tha...

http://dilkikalam-dileep.blogspot.com/

वाणी गीत ने कहा…

मोर के पाँव ही न देख तू
मोर के पंख भी तो देख
शूल भी फूल हैं बस इक नजर
गौर से जिन्दगी तो देख.....
अभी तक तो यही जाना था की मोर अपने पैरों को देख कर रोता है ...पंख भी देखता रहे तो आंसू क्यों ...
आशा जगाती अभिव्यक्ति ...

काव्य संध्या की इस रिपोर्ट के लिए आभार ...!!